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आस्था की चौरासी कोसी परिक्रमा 19 से शुरू, जानें क्या है धार्मिक मान्यता

आस्था की चौरासी कोसी परिक्रमा बस्ती जिले के मखौड़ा से शुरू होगी। धार्मिक मान्यता के अनुसार 84 लाख योनियों में जन्म मरण के बंधन से मुक्त होने का सुलभ माध्यम बताया गया है।

By Edited By: Published: Thu, 18 Apr 2019 06:30 AM (IST)Updated: Thu, 18 Apr 2019 11:48 AM (IST)
आस्था की चौरासी कोसी परिक्रमा 19 से शुरू, जानें क्या है धार्मिक मान्यता
आस्था की चौरासी कोसी परिक्रमा 19 से शुरू, जानें क्या है धार्मिक मान्यता
गोरखपुर, जेएनएन। आस्था की चौरासी कोसी परिक्रमा बस्ती जिले के मखौड़ा से शुरू होगी। धार्मिक मान्यता के अनुसार 84 लाख योनियों में जन्म मरण के बंधन से मुक्त होने का सुलभ माध्यम बताया गया है। चैत्र पूर्णिमा शुक्रवार 19 अप्रैल की भोर से मखौड़ा धाम स्थित मनवर गंगा (मनोरमा) के पवित्र जल में स्नान कर नागा साधु संत व आस्थावान संकल्प के साथ परिक्रमा आरंभ करेंगे। 24 तिथियों की पैदल यात्रा के बाद 252 किलोमीटर यानि चौरासी कोस चलकर श्रद्धालु पुन: वैशाख मास की जानकी नवमी को मखौड़ा धाम में ही विधि विधान पूर्वक परिक्रमा संपन्न करेंगे।
आस्था और साधना पर आधारित है हिंदू धर्म मखौड़ा धाम के पुजारी सूरज दास बताते हैं कि हिंदू धर्म आस्था व साधना पर आधारित है। आध्यात्मिक व धार्मिक मान्यता में परिक्रमा को मुक्ति का आसान साधन बताया गया है। साम‌र्थ्य के अनुसार मनुष्य 84 कोस 14 कोस व पांच कोस की परिक्रमा देवभूमि से पूरी कर अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकता है। यह ब्रज क्षेत्र के गोवर्धन, अयोध्या के सरयू तट पर बसे 84 कोस भूभाग चित्रकूट में कामदगिरि तथा दक्षिण भारत में तिरुवन्नमलई में अलग-अलग समय में परिक्रमा यात्रा की जाती है।
परिक्रमा कहीं चैत्र की पूर्णिमा से तो कहीं कार्तिक मास में करने का विधान है। मखौड़ा धाम से शुरू होने वाली 84 कोसी परिक्रमा त्रेता युग में चक्रवर्ती सम्राट दशरथ अवस्था के चौथे पड़ाव में जब वंशवेल की संत्रास पीड़ा झेल रहे थे तो श्रृंगी ऋषि ने इसी पवित्र स्थल पर पुत्र कामेष्ठि यज्ञ कराया। फलस्वरूप चैत्र राम नवमी को मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम सहित चारो भाई अवतरित हुए। जन्म के छठवें दिन चैत्र पूर्णिमा को मख धाम तथा अयोध्या में छठ उत्सव मनाया गया। चैत्र पूर्णिमा तिथि को राक्षसराज रावण के समूल विनाश के लिए पिता के आज्ञानुसार राम अनुज लक्ष्मण व पत्‍‌नी सीता के साथ मख क्षेत्र से होकर 14 वर्ष के लिए वन प्रस्थान करने की भी मान्यता है।
जिन वन क्षेत्रों से होकर श्री राम गुजरे, उन्ही मार्गो से होकर श्रद्धालु अपनी परिक्रमा पूर्ण करते हैं। एक दिन पहले साधु-संतों व श्रद्धालुओं का पहुंचता है जत्था च त्र पूर्णिमा से एक दिन पहले देश के अलग-अलग प्रांतों से साधु-संतों व श्रद्धालुओं का जत्था मखौड़ा धाम पहुंच जाता है। परंपरा के अनुसार संध्या वंदन के पश्चात भौरी और भाटा (लिट्टी चोखा) व्यंजन रूप में तैयार कर भगवान राम को अर्पित किया जाता है, जिसे भक्त प्रसाद रूप में ग्रहण करते हैं।
दूसरे दिन पूर्णिमा की भोर में ही मनोरमा के पवित्र जल में स्नान कर श्रद्धालु राम जानकी दरबार में पूजा अर्चना के बाद परिक्रमा का संकल्प लेते हैं और यहीं से अपनी यात्रा प्रारंभ कर रामरेखा, हनुमान बाग, चकोही बाग, सेरवा घाट के श्रृंगी ऋषि आश्रम, सूरजकुंड ,दर्शन नगर, अयोध्या परिक्षेत्र से आगे बढ़ते हुए अंबेडकर नगर बाराबंकी गोनार्द क्षेत्र गोंडा बहराइच के विभिन्न धर्म स्थलों के पड़ाव से गुजरते हुए पुन: जानकी नवमी को मखौड़ा धाम में संपन्न करते हैं। कठिन है परिक्रमा के नियम अयोध्या के संत गया दास बताते हैं कि साधक संयम और नियम पालन कर ही पुण्य का भागी बन सकता है।
भूमि पर सोना नित्य स्नान ब्रह्मचर्य पालन, जूते चप्पल का त्याग, मिथ्या वाणी, व्यसन, क्रोध-लोभ, मोह, मद का त्याग, नित्य स्नान देव आराधना प्रभु संकीर्तन जप तप गोवंश, ब्राह्मण, बालक, वृद्ध, असहाय, गर्भिणी की सहायता करें। परनिंदा तथा परस्त्री दर्शन से दूर रहना, हिंसा तथा जीव हत्या आदि कुकृत्य वर्जित है।

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