44 साल की तबाही, 62 पुरवों की गवाही
आजादी के बाद से अब तक कुशीनगर जिले में 72 पुरवे नारायणी नदी में समा गए हैं। इन पुरवे के लोग तभी से बांध पर अपना निवास बनाए हुए हैं। इनके लिए अब तक कोई सार्थक प्रयास नहीं किए गए। हर अधिकारी आता है और सिर्फ आश्वासन देकर चला जाता है। इस साल भी बाढ़ आने वाली है। बांध पर शरण लिए लोग तबाही का मंजर देखने के लिए तैयार हैं।
गोरखपुर : हम आजादी के 71 सालों में विकास के नए कोरस गा रहे हैं। खुशहाली के तराने गुनगुना रहे हैं। इसके बीच पूर्वांचल के पिछड़े जिले कुशीनगर में आजादी लेकर अब तक बाढ़ ने तबाही की नई इबारत लिख डाली है। इसकी गवाही दे रहे हैं, इतिहास के पन्नों में दर्ज हुए 62 पुरवे। यह पुरवे कुशीनगर जिले में हैं। तबाही के इस खेल पर सरकारी धन के बर्बादी का मेल तो देखिए, लगभग 200 करोड़ रुपये बचाव के नाम पर खर्च हो गए, लेकिन बस्तियों के उजड़ने का क्रम नहीं थमा है।
एक बार फिर तबाही दस्तक देने वाली है तो प्रभावित लोग अपनी मजबूरी की चौखट पर खड़े तबाही के मंजर को देखने को मजबूर हैं। कई सरकारों व जनप्रतिनिधियों ने इस तबाही की आंच पर सियासी रोटी तो सेंकी, लेकिन तबाही रोकने का मुकम्मल इंतजाम न हो सका। हाल यह है कि यहां केवल दो ही चीजें हैं, एक तबाही, दूसरी उसकी गवाही।
जानकारी के अनुसार 50 से 60 हजार की आबादी प्रत्येक वर्ष नारायणी का कहर झेलती है। सर्वाधिक छह ब्लाक तमकुहीराज, सेवरही, दुदही, विशुनपुरा, खड्डा, प्रभावित होते हैं। बचाव के लिए करीब 115 किमी की दूरी की श्रृंखला में अहिरौलीदान-पिपराघाट, अमवा खास, पिपरा-पिपरासी समेत आधा दर्जन बांध 1977 में बनाए गए। बावजूद असके वर्ष 1984 में बाढ़ ने तबाही की इबारत लिखने की शुरुआत की तो फिर रुकी नहीं।
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ये टोले हुए पानी में विलीन-
-1984 से लेकर अब तक अमवा खास के 9, रामपुर बरहन के 6, अमवादीगर के 2, परसौनी उर्फ परसिया के 3, घघवा जगदीश के 7, जवही दयाल के 5, विरवट कोन्हवलिया के 4, बागाचौार के 5, अहिरौलीदान के 9, जंगलीपट्टी के 4 समेत कुल 62 टोले पानी में विलीन हो गए हैं।
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फिर खड़ा हुआ तबाही का मंजर
-इस वर्ष भी अमवाखास के ¨रग बांध पर मंडरा रहा खतरा, बरवापट्टी, खैरटिया, गोबरहां, कैथवलिया समेत पांच पुरवों के वजूद पर संकट खड़ा करता दिख रहा है। तबाही का पुराना इतिहास दोहराने की कगार पर नारायणी की विनाशकारी लहरें हिलोरें मार रही हैं।
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बांध पर शरण लिए बेघर 500 परिवार
-बाढ़ की तबाही में वजूद खो चुके इन पुरवों के लोगों को विस्थापित कर बसाया गया, लेकिन 500 परिवार अब भी दर-बदर की ठोकरें खाने को विवश हैं। तबाही के मुहाने पर बांध को ही आशियाना बना रखा है। बार-बार उठने वाली इनके पुनर्वास की मांग पूरी नही हो सकी सकी है।
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यह है बाढ़ प्रभावितों के दर्द
-बाढ़ प्रभावित ग्रामीण मूलभूत सुविधाओं का अभाव झेल रहे हैं। झापस मुखिया, रामईश्वर, बाूढू कहते हैं कि हमारे दर्द की कोई सीमा नहीं है। हर बार तबाही झेलना हमारी नियति बन चुकी है। सच तो यह है कि जितना बांध के मरम्मत के नाम पर खर्च हो चुका है, उतने में बांध पक्के बना दिए गए होते।
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स्थिति संवेदनशील, तैयारी पूरी: डीएम
-जिलाधिकारी डॉ अनिल कुमार ¨सह ने कहा कि अमवा खास के ¨रग बांध पर स्थिति संवेदनशील है, लेकिन बचाव की मुकम्मल तैयारी है और कार्य तेजी से चल रहा है। किसी भी दशा में कहीं कोई नुकसान नहीं होने दिया जाएगा। बेघर बाढ़ प्रभावितों को बसाने का कार्य किया भी जाएगा।