कार्यकर्ता के लिए सीट भी छोड़ी, प्रचार करके दिलाई थी जीत
गोंडा चार बार विधायक बने ईश्वर शरण का कुछ अलग था अंदाज तांगा व इक्के से करते थे प्रचार।
नंदलाल तिवारी, गोंडा: सियासी बिगुल बज चुका है। सत्ता का रण तैयार है। सियासी पार्टियों के सियासतदां मैदान में आ रहे हैं। जीत हासिल करने के लिए आरोप-प्रत्यारोप भी चल रहे हैं। इन सबके बीच वरिष्ठ नागरिकों की जुबां पर पहले के चुनाव की एक से बढ़कर एक ऐसी रोचक कहानियां है, जो आज और बीते हुए कल की राजनीतिक माहौल का आईना बयां कर रही है। वर्ष 1957 के चुनाव में बाबू ईश्वर शरण को तरबगंज से विधानसभा चुनाव का टिकट मिला था। एक कार्यकर्ता शीतला प्रसाद सिंह के पक्ष में उन्होंने न केवल अपनी सीट छोड़ दी थी, बल्कि प्रचार करके उसे जीत तक दिलवाई थी।
चार बार विधायक रह चुके बाबू ईश्वर शरण के भतीजे राधाकुंड निवासी आनंद सरन का कहना है कि चाचाजी का अंदाज अलग था। वह देश की आजादी में सक्रिय लड़ाई लड़े थे। आजादी के बाद प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री गोविद वल्लभ पंत एक बार गोंडा आए। उन्होंने ईश्वर शरण को नैनीताल में 300 बीघा जमीन व तीन हजार रुपये देने की पेशकश की थी। क्या देश की सेवा की आप हमें कीमत देना चाहते हैं. के अल्फाज के साथ उन्होंने इसे ठुकरा दिया था।
1967 के चुनाव की बात करें तो सुचेता कृपलानी संसदीय चुनाव में उम्मीदवार थी, ईश्वर शरण विधानसभा के प्रत्याशी थे। सुचेता कृपलानी सुबह-सुबह ही आ गई। वह घर के बाहर तख्त पर बैठकर बाबू ईश्वर शरण का इंतजार करने लगी। पूजा में व्यस्त होने के कारण वह देर से बाहर निकले, इस पर सुचेता कृपलानी नाराजगी जताने लगी। इस पर उन्होंने कहा कि जाइए आप अपना प्रचार करिए, हम अपना करते हैं।
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कुछ अलग था अंदाज
- स्वजन विवेक सरन का कहना है कि घर के सामने एक मुस्लिम परिवार रहता था। उसके पास तांगा व इक्का था। चुनाव के दौरान बाबू ईश्वर शरण पहले इसी तांगे व इक्का से प्रचार करते थे। बाद में पार्टी चुनाव प्रचार के लिए एक जीप देती थी। वह सभी को हाथ जोड़कर प्रणाम करते थे।