राखी से सजेगी भाइयों की कलाई, बहनें कर रहीं कमाई
स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने ढूंढा स्वरोजगार का जरिय
गोंडा : दतौली गांव की केशपती के पास कमाई का कोई जरिया नहीं था। वह गांव के स्वयं सहायता समूह से जुड़ी हुई हैं। समूह से ऋण लेकर उन्होंने राखी की दुकान लगाने का फैसला किया। कुछ राखी उन्होंने खुद बनाई, जबकि ज्यादातर राखियां बाजार से मंगवाईं। कुड़ासन बाजार में वह राखी बेचकर कमाई कर रही हैं। सिसवा की तारादेवी ने भी झिलाही बाजार में दुकान लगाई है। वह दस से अधिक राखी खरीदने वाले ग्राहकों को अपनी तरफ से एक राखी मुफ्त में देती हैं। उनका कहना है कि एक राखी मेरी तरफ से किसी भाई के हाथ में सज जाए तो खुशी मिलेगी। इसी तरह छपिया ब्लॉक के आजीविका स्वयं सहायता समूह के सदस्यों ने राखी की दुकान से कमाई का जरिया ढूंढा है। ये तो सिर्फ बानगी है। जिले के विभिन्न क्षेत्रों में करीब 30 महिलाएं राखी बेचकर पैसे कमा रही हैं। अबतक करीब 50 हजार रुपये की राखी बिक चुकी हैं।
बाजारों में राखी की दुकान पर बढ़ने लगी भीड़
-भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का त्यौहार रक्षाबंधन की घड़ियां धीरे-धीरे करीब आ रही हैं। ऐसे में बाजार में सजी रक्षाबंधन व मिठाई की दुकानों पर भीड़ बढ़ने लगी है। बहनें स्वदेशी राखियां पसंद कर रही हैं। इस बार दूसरे देश की राखियां बाजार में न के बराबर हैं और ग्राहक भी मांग नहीं कर रहे हैं। छपिया, मनकापुर व नवाबगंज ब्लॉक के स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने समूह से पैसे लेकर रक्षाबंधन त्यौहार को लेकर स्थानीय बाजारों में स्टॉल लगाया है। इससे करीब 30 सदस्य जुड़े हुए हैं।
-नीलांबुज कुमार श्रीवास्तव, जिला प्रबंधक राष्ट्रीय आजीविका मिशन