बीमारी फैलने का रहे न डर, परिवार कर रहा खेत में गुजर
वैश्विक महामारी कोरोना से गांव को बचाने के लोग खुद ही त्याग कर रहे हैं। लखनऊ से आठ दिन पहले लौटे डाला बुक कराकर पहुंचे प्रवासी ने जब क्वारंटाइन का कोई उपाय नहीं देखा तो वह खुद ही अपने परिवार के साथ अपने खेत में आइसोलेट हो गया। बलरामपुर-गोंडा सीमा के निकट खेत में क्वारंटाइन यह परिवार 46 डिग्री के तापमान में किसी तरह दिन काट गांव के सलामती की दुआ कर रहा है।
बलरामपुर : वैश्विक महामारी कोरोना से गांव को बचाने के लिए लोग खुद ही त्याग कर रहे हैं। लखनऊ से आठ दिन पहले परिवार के साथ लौटे धर्मकिशोर ने जब क्वारंटाइन का कोई उपाय नहीं देखा तो वह खुद ही अपने परिवार के साथ अपने खेत में ही क्वारंटाइन हो गए।
घर में लगा ताला, खेत में परिवार
बलरामपुर गोंडा सीमा पर बसे त्रिभुवननगर गांव निवासी धर्मकिशोर लखनऊ में बिजली का काम कर परिवार सहित गुजारा करते हैं। घर पर उसकी मां दुरपता रहती थी जो लॉकडाउन के पहले ताला लगा कर मिलने गई थीं। जब तक लौटी तब तक लॉकडाउन हो चुका था। पूरा परिवार फंसा देख धर्मकिशोर ने डाला बुक कराया और गोंडा पहुंच गए। गोंडा से 31 किमी पैदल चल यह परिवार गांव पहुंचा तो प्रधान ने क्वारंटाइन की व्यवस्था न होने की बात कहकर हाथ खड़े कर दिए। जबकि ग्रामीण बाहरी लोगों के आने का विरोध कर रहे थे। इस पर धर्मकिशोर ने घर में ताला लगा रहने देने का निर्णय लेते हुए 14 दिन खेत में ही बिताना शुरू कर दिया।
राशन भी नहीं नसीब :
धर्मकिशोर आठ दिनों से अपनी मां दुरपता, पत्नी नीलम व दो बच्चों भानू व ज्योति के साथ कड़ी धूप में खेत में क्वारंटाइन है, लेकिन सरकार से कोई मदद नहीं मिली। यहां तक कि राशनकार्ड न होने से राशन भी नहीं मिल सका। कोट
धर्मकिशोर आठ दिन पहले परिवार के साथ आए थे। वह अपने खेत में पॉलीथिन तानकर रह रहे हैं। सरकार की तरफ से कुछ नहीं मिला है फिर वह क्या मदद करें।
राजेंद्र वर्मा, प्रधान
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