50 दिनों में 28 नवजात ने तोड़ा दम, सुविधाएं बेदम
गोंडा: सरकार की मंशा है कि शिशु मृत्युदर को कम किया जाय। इसके लिए हर स्तर पर प्रयास
गोंडा: सरकार की मंशा है कि शिशु मृत्युदर को कम किया जाय। इसके लिए हर स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। गर्भ का पता चलते ही आशा से लेकर एएनएम तक उनकी निगरानी कर रही है। कब कौन सा टीका लगना है, गर्भवती को कौन सा पौष्टिक आहार दिया जाना है, कैसे उन्हें सेहतमंद बनाया जाना है. जैसे तमाम ¨बदुओं पर निगरानी के साथ ही उन गर्भवती पर विशेष नजर रखी जा रही है, जो कमजोर है। बावजूद इसके समय से पहले जन्म होने व वजन कम होने की वजह नवजात पर भारी पड़ रही है। आंकड़ों पर नजर डालें तो पहली अप्रैल से 20 मई के मध्य जिला महिला अस्पताल के सिक न्यू बार्न केयर यूनिट में 28 मासूमों ने दम तोड़ दिया। हालांकि विभाग इन मौतों की वजह विभिन्न कारण दर्शा रहा है।
जिला महिला अस्पताल में स्थापित एसएनसीयू में पहली अप्रैल से 20 अप्रैल 2018 के मध्य कुल 58 बच्चे भर्ती कराए गए। जिसमें 35 बच्चों ने जिला महिला अस्पताल में जन्म लिया था, जबकि 23 बच्चों ने बाहर से आए थे। उपचार के दौरान यहां पर दस बच्चों ने दम तोड़ दिया। बीस अप्रैल से 20 मई के बीच यहां पर कुल 84 बच्चे भर्ती किए गए, जिसमें से 46 को डिस्चार्ज कर दिया गया। वहीं पर 18 बच्चों की मौत हो गई। हालांकि विभागीय अधिकारियों की मानें तो किसी भी बच्चे के इलाज में कोई लापरवाही नहीं हुई है। यहां पर भर्ती होते समय ही बच्चों की हालत गंभीर थी, ऐसे में उन्हें बचाने की कोशिश की गई लेकिन निराशा हाथ लगी। बाल रोग विशेषज्ञ डॉ राम लखन का कहना है कि भर्ती होने वाले बच्चों पर पूरा ध्यान रखा जा रहा है।
संसाधनों का अकाल- महिला अस्पताल में स्थापित एसएनसीयू में संसाधनों की कमी है। दस बेड होने के कारण यहां पर बच्चों को भर्ती करने में दिक्कत आ रही है। साथ ही यहां पर स्टाफ तक के बैठने का सही इंतजाम नहीं है। शौचालय सहित अन्य समस्याएं हैं। प्रसव कक्ष के सामने होने के कारण यहां पर अधिक दबाव रहता है। एसएनसीयू में बच्चे को भर्ती कराने को लेकर हुई मारपीट के बाद गार्ड की तैनाती तो कर दी गई लेकिन अभी तक वर्दी भी नहीं मिल पाई है।
डॉक्टरों की कमी
- डॉक्टरों की कमी यहां पर एक बड़ी समस्या है। महिला अस्पताल में मात्र एक बाल रोग विशेषज्ञ की तैनाती है। उन्हें ओपीडी में मरीजों को देखना पड़ता है। साथ ही एसएनसीयू का भी काम संभालना पड़ रहा है। यही नहीं, यहां पर तैनात अन्य कर्मियों को दो माह से वेतन भी नहीं मिला है।
जिम्मेदार के बोल
बच्चों की मौत की वजह अलग-अलग है। गंभीर स्थिति होने के बाद यहां पर लोग लेकर आते हैं। जिससे समस्या आती है। हालांकि बच्चों की मौत के असली कारणों का अध्ययन करके अधिकारियों को रिपोर्ट भेजी जाएगी, जिससे समय रहते उस पर कार्रवाई हो सके।
- डॉ. अरुण लाल, सीएमएस।