स्वरोजगार अपनाकर आत्मनिर्भर बनेंगे युवा
बढ़ती बेरोजगारी की वजह से ग्रामीण युवक-युवतियां अब गांव ।
जागरण संवाददाता, गाजीपुर : बढ़ती बेरोजगारी की वजह से ग्रामीण युवक-युवतियां अब गांव में ही स्वरोजगार अपनाकर आत्मनिर्भर बन सकते हैं। कृषि विज्ञान केंद्र आकुशपुर में दुग्ध व्यवसाय में स्वरोजगार के लिए ग्रामीण युवक-युवतियों को दक्षता अभिवृद्धि रोजगार परक प्रशिक्षण दिया गया।
इस प्रशिक्षण में मुहम्मदाबाद, रेवतीपुर व जमनिया ब्लाक के गांवों से 25 बेरोजगार युवक-युवतियों को चयनित किया गया था। आचार्य नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय अयोध्या से संबंद्ध कृषि विज्ञान केंद्र आकुशपुर के वरिष्ठ विज्ञानी एवं अध्यक्ष डा. राजेश वर्मा ने दूध व्यवसाय अपनाकर स्वरोजगार करने के लिए प्रशिक्षणार्थियों को प्रेरित किया। बताया कि भारत विश्व में दूध उत्पादन में प्रथम स्थान पर है, लेकिन प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता विकसित देशों की अपेक्षा काफी कम है। प्रशिक्षण के दौरान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक पशुपालन डा. एके सिंह ने प्रशिक्षण के दौरान दुधारू गायों की स्वदेशी उन्नत नस्लें जैसे साहीवाल, लालसिधी, गिर नस्ल आदि की विशेषता बताते हुए बताया कि यह प्रति ब्याज 300 दिनों की दुग्धावधि में 2200 से 2500 लीटर तक दूध उत्पादन करती हैं एवं समय से गर्भ भी धारण कर लेती हैं। डेयरी व्यवसाय के लिए यह उपयुक्त नस्ल है। इसी तरह भैसों में मुर्रा, मेहसाना, तथा जफराबादी आदि प्रमुख नस्लें हैं। इस नस्ल के पशु 12 से 15 लीटर तक दूध उत्पादन प्रतिदिन करते हैं, यह डेयरी व्यवसाय के लिए उत्तम नस्लें हैं। भदावरी नस्ल की भैंस में वसा की मात्रा ज्यादा पाई जाती है जो लगभग 12 से 13फीसद तक हो सकती है। डेयरी व्यवसाय में सबसे ज्यादा खर्च पशुओं के चारे- दाने पर आता है यह 60 से 65 फीसद तक आता है। यदि पशुपालक खेतों में गेहूं की भूसे एवं धान के पुआल को न जलाकर इसे सुरक्षित रख लें तो यह काफी उपयोगी होगा एवं इससे पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचेगा। इसके साथ ही पशुपालक हरे चारे की व्यवस्था कर लें तो फिर उनको बाजार से दाना ही खरीदना पड़ेगा। प्रत्येक दुधारू पशु को 20 से 25 किलोग्राम हरा चारा अवश्य खिलाना चाहिए।
---
ठंड में बढ़ा देना चाहिए दाना
ठंड के मौसम में पशुओं के शरीर को गरम रखने के लिए दाने की निर्धारित मात्रा में एक किलोग्राम प्रति पशु अतिरिक्त दाना बढ़ा देना चाहिए, इससे पशुओं को अपना शरीर गरम रखने में मदद मिलती है एवं ठंड लगने का खतरा नहीं रहता है। इसके अतिरिक्त प्रशिक्षण में पशुओं की बीमारी एवं इसकी रोकथाम एवं ठंड में पशुओं का प्रबंधन कैसे किया जाए इसकी भी जानकारी दी गई। प्रशिक्षण के अंत में केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. जेपी सिंह ने हरे चारे की उन्नत खेती कैसे किसान करें इसकी तकनीकी के बारे में जानकारी दी।