आज उठेंगे ताजिए व अलम, जगह-जगह मनाया जाएगा हुसैन का गम
आज उठेगें ताजिए जगह-जगह मनाया जाएगा हुसैन का गम
आज उठेंगे ताजिए व अलम, जगह-जगह मनाया जाएगा हुसैन का गम
- हजरत इमाम हुसैन की याद में जगह-जगह रखे जाएंगे ताजिए
- रात भर होगा नोहाखानी व मातम, बुलंद होंगी या हुसैन की सदाएं
जागरण संवाददाता, शादियाबाद(गाजीपुर): आज शहीदांने कर्बला हजरत इमाम हुसैन की याद में जगह-जगह ताजिए रखे जाएंगे और हजरत इमाम हुसैन को खेराजे अकीदत पेश की जाएगी। कस्बे के साथ आसपास के गांव में अलम व ताजिए का जुलूस उठाया जाएगा। रातभर नोहाखानी व मातम होगा, हर तरफ या हुसैन या हुसैन की सदाएं बुलंद होंगी। यूं तो हर त्योहार खुशी व उत्साह का प्रतीक होता है, लेकिन मोहर्रम एक ऐसा त्योहार है जो हजरत इमाम हुसैन का शोक मनाने के लिए मनाया जाता है। हजरत इमाम हुसैन ने मानवता की रक्षा के लिए अपनी, अपने परिवार व दोस्तों की कुर्बानी दे दी थी। इसी शहादत की याद में मुसलमान ताजिए निकालते हैं। ताजिए को उन शहीदों का प्रतीक माना जाता है। इस ताजिए के साथ जुलूस निकालकर दसवीं मोहर्रम को प्रतीकात्मक रूप से दफनाया जाता है। हजरत इमाम हुसैन की शहादत हमें जुल्म बाहुबल व वंशवाद के खिलाफ डटकर खड़े रहने की प्रेरणा देता है। यजीद जो बहुत बड़ा अत्याचारी पापी था। वह अपने पिता मोवाईया के मरने के बाद खुद को जबरदस्ती इस्लाम का खलीफा घोषित कर देता है। वह चाहता था की हुसैन उसके साथ आ गये तो इस्लाम उसकी मुठ्ठी में हो जाएगा। कर्बला के मैदान में यजीद ने उनको घेर लिया। तीन दिन तक उनको पानी तक नहीं लेने दिया गया। कर्बला में बहने वाली नदी फुरात पर पहरा लगा दिया गया ताकि कोई हुसैन के खेमे का फुरात नदी से पानी न ले सके। हर तरह से इमाम हुसैन को यजीद के आगे झुकने व उसकी बययत करने के लिए मजबूर किया गया, लेकिन इमाम हुसैन ने अपनी और अपने परिवार की कुर्बानी देना कबूल किया लेकिन यजीद के जुल्म के सामने झुके नहीं। यही वजह है कि चौदह सौ वर्ष से अधिक समय गुजरने के बाद भी जब भी जुल्म व बर्बरता के खिलाफ वंशवाद के खिलाफ खड़े होने की बात होती है, अहिंसा की बात होती है तो हजरत इमाम हुसैन व कर्बला की घटना से प्रेरणा ली जाती है।