काशी के रामनगर से जुड़ा है शहर के लंका मैदान का रावण दहन
अविनाश सिंह जागरण संवाददाता गाजीपुर जनपद में दशहरा की शुरुआत 1765 ईस्वी से हुई
अविनाश सिंह जागरण संवाददाता, गाजीपुर : जनपद में दशहरा की शुरुआत 1765 ईस्वी से हुई है। इसका इतिहास राजा बलवंत सिंह रामनगर, काशी से जुड़ा हुआ है। जब यह जनपद उनके अधीन आया, उन्होंने ही बनारस और गाजीपुर में लीला को भव्य रूप दिया। लंका दहन के नाम से गाजीपुर में इस मैदान को विशेष जमीन के तौर पर अधिकृत किया गया। जिले के वरिष्ठ इतिहासकार उबैदुर्रहमान बताते हैं कि तत्कालीन कागजात में लंका के मैदान की आराजी पर राजा रामनगर का नाम मिलेगा। यह बहुत बड़ी जमीन थी जिसके थोड़े-थोड़े हिस्से को बेचा गया और अब यह सिकुड़ गया है। लंका का मैदान विशेष रूप से शहर के बाहर इसलिए बनाया गया कि शहर के अलावा गांव-देहात के लोग अपने-अपने साधनों से आ सकें और भीड़ न हो। वे बताते हैं कि बचपन में मैंने लोगों को कंधों पर बच्चों और बच्चियों को लेकर गांव-गांव से झुंड के झुंड में आते देखा है।
--- बलदाऊ जी के मंदिर के पास होता है मंचन : राम लीला का मंचन पूरे एक महीना हरिशंकरी स्थित बलदाऊ जी के मंदिर के पास होता है। तब श्रद्धालुओं के खाने-पीने, रहने की पूरी व्यवस्था वहां के ब्राह्मण पुजारी करते थे, जिनके परिवार आज भी हैं। आज जितनी घनी आबादी है, उतनी उस समय नहीं थी। पहले लोटन इमली में होता था मंचन
: इसके पूर्व रामलीला का मंचन, लोटन इमली हुआ करता था। इस नाम को भी काशी के नाटी इमली से जोड़ते हुए रखा गया था, जहां पहले वहीं रावण दहन होता था। लोटन इमली पुलिस चौकी के सामने से एक मार्ग गाजीपुर घाट जाता है। उसी के पास नवाब साहब की चहार दिवारी से लगे रास्ते पर बहुत बड़ा पत्थर का सिंहासन बना हुआ था, जो राम-सीता चबूतरा हुआ करता था। वहीं सामने विशाल मैदान में रावण दहन भी होता था।