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चार सौ वर्ष से अधिक पुरानी है नगर की रामलीला

गाजीपुर नगर की रामलीला का इतिहास काफी पुराना है। पुराने दस्तावेजों पर अगर निगाह डाली जाए तो शहर की रामलीला चार सौ वर्ष से अधिक पुरानी है। शुरुआती दौर में हरिशंकरी के लोग इस मंचन में खुद हिस्सा लेते थे और पात्र बनकर इसका आयोजन करते थे लेकिन समय बदलने के साथ ही करीब 30 वर्षों से बाहरी कलाकारों द्वारा ाइसका मंचन किया जाने लगा है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 29 Sep 2019 10:03 PM (IST)Updated: Mon, 30 Sep 2019 06:22 AM (IST)
चार सौ वर्ष से अधिक पुरानी है नगर की रामलीला
चार सौ वर्ष से अधिक पुरानी है नगर की रामलीला

जासं, गाजीपुर : नगर की रामलीला का इतिहास काफी पुराना है। पुराने दस्तावेजों पर अगर निगाह डाली जाए तो शहर की रामलीला चार सौ वर्ष से अधिक पुरानी है। शुरुआती दौर में हरिशंकरी के लोग इस मंचन में खुद हिस्सा लेते थे और पात्र बनकर इसका आयोजन करते थे लेकिन समय बदलने के साथ ही करीब 30 वर्षों से बाहरी कलाकारों द्वारा इसका मंचन किया जाने लगा है।

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काशी में जब मेधा भगत के साथ तुलसीदास ने रामलीला का मंचन किया उसी वर्ष नगर की रामलीला की शुरुआत हुई। लेकिन इसे रामनगर के नरेश उदित नारायन ने वर्ष 1776 में इसे व्यवस्थित रूप दिया। इसका मंचन अति प्राचीन रामलीला कमेटी द्वारा हरिशंकरी से शुरू हुआ। शुरुआती मंचन के बाद वनगमन के दौरान रामचंद्र, सीता एवं लक्ष्मण रौजा स्थित चंदन नगर कालोनी तक जाते थे। उस समय वहां पर एक मंदिर हुआ करता था जिसके दर्शन के बाद श्रीराम जी पहाड़ खां पोखरा से झिझरी खेलते हुए भारद्वाज मुनि के आश्रम तक जाते थे। वहां के मंचन के बाद रथ अर्बन बैंक के स्थित शंभुनाथ बाग के पास होने वाले मंचन के बाद लंका मैदान चला जाता था। लेकिन वर्ष 1868 में जब मुहर्रम और रामलीला एक ही दिन पड़ा तो तत्कालीन लार्ड मुनवर ने साम्प्रदायिक सौहार्द को बनाए रखने के लिए रूट चार्ट निर्धारित किया। निर्धारित रास्तों के अनुसार श्रीराम का वनगमन हरिशंकरी से शुरू होकर झुन्नू लाल चौराहा, राजकीय बालिका इंटर कालेज हुए तिलकनगर स्थित रामजानकी मंदिर तक होता है और वहीं पर जाकर विश्राम करते हैं। इसके बाद वहां से पहाड़ खां पोखरा से झिझरी खेलते हुए पुराने रास्तों से होते हुए लंका मैदान पहुंच जाते हैं। स्थानीय कलाकार करते थे मंचन

: अति प्रचीन रामलीला कमेटी के महामंत्री ओमप्रकाश तिवारी उर्फ बच्चा ने कहा कि इलाहाबाद, काशी, जौनपुर एवं गाजीपुर की रामलीला एक ही साथ शुरू हुई थी। शुरुआत में यहीं के लोग रामलीला के पात्रों का मंचन किया करते थे लेकिन धीरे-धीरे इसमें बदलाव होता गया।


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