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परंपरागत फसल की जगह खेतों में लहलहा रहा केला

जासं, भांवरकोल (गाजीपुर): परंपरागत व रासायनिक खेती से धीरे-धीरे किसानों का मोहभंग हो

By JagranEdited By: Published: Thu, 31 May 2018 09:33 PM (IST)Updated: Thu, 31 May 2018 09:33 PM (IST)
परंपरागत फसल की जगह खेतों में लहलहा रहा केला
परंपरागत फसल की जगह खेतों में लहलहा रहा केला

जासं, भांवरकोल (गाजीपुर): परंपरागत व रासायनिक खेती से धीरे-धीरे किसानों का मोहभंग होता जा रहा है। खेती का बढ़ता खर्च और बाजार में गिरते उपज के मूल्य ने किसानों को कुछ अलग करने को मजबूर कर दिया है। ऐसे ही एक किसान हैं माचा गांव निवासी यमुना यादव, जिन्होंने परंपरागत खेती छोड़कर सब्जी व केले की खेती शुरू कर दी। इसके लिए उन्होंने काफी मेहनत की और अधिक पैदावार लेने के लिए खेत की मिट्टी की जांच भी करवाते हैं। दूसरे किसानों को भी इसके साथ जैविक खेती के लिए प्रेरित करते हैं।

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गांव के पूरब यमुना का डेढ़ बीघा खेत है। उनका खेत नहर से मात्र कुछ ही मीटर दूरी पर है। नहर में पानी न आने के कारण ¨सचाई की आवश्यकता को देखते हुए उन्होंने इतने कम रकबे पर भी अपना निजी नलकूप लगा लिए खेती करने के लिए। बताया कि उनका खेत कभी खाली नहीं रहता है। अभी कुछ दिन पहले खेत में साढ़े तीन मंडा मिर्च, ढाई मंडा बैगन तथा डेढ़-डेढ़ मंडा गाजर व चुकन्दर की खेती की थी। इसके अलावा इस वर्ष नये सिरे से केले की खेती भी किए हैं। बताया कि मिर्जाबाद के किसान रमापति कुशवाहा की प्रेरणा से वह इस वर्ष छह मंडा केले की खेती किए हैं। छह मंडा खेत के लिए कुशीनगर से 26 रुपये प्रति पौधा के हिसाब से 500 पौधा (केला की पुत्ती) खरीद कर लाए। खेत में गड्ढों की खोदाई किए। इसके बाद उन गड्ढे को पुन: मिट्टी व खाद मिलाकर भरने के पश्चात उसमें केले के पौधों की रोपाई कर दिए। बताया कि छह मंडा केला की खेती में अब तक 25 हजार रुपये पौधों एवं दवाओं में भी खर्च हो चुके हैं। आवारा पशु इन पौधों को किसी प्रकार की क्षति न पहुंचा सकें इसके लिए इसकी देखभाल कुछ विशेष करनी ही पड़ती है। केले की फसल अच्छी है और अगर बाजार भाव भी ठीकठाक मिल गया तो अन्य फसलों के मुकाबले यह अधिक मुनाफा देगा। अगले वर्ष से केले का रकबा और बढ़ाने की सोच रहे हैं।


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