विकास कराने वाली सरकार जनता को पसंद
जागरण संवाददाता, बारा (गाजीपुर) : लोकसभा चुनाव की चर्चा आज हर जुबान पर है। चार-पांच लोगों के इकट्ठा
जागरण संवाददाता, बारा (गाजीपुर) : लोकसभा चुनाव की चर्चा आज हर जुबान पर है। चार-पांच लोगों के इकट्ठा होते ही चुनाव पर बहस शुरू हो जाती है। पूर्व सांसद विश्वनाथ सिंह गहमरी के गांव गहमर स्थित मांधाता सिंह के चाय की दुकान पर शनिवार को ऐसा देखने को मिला। वहां लोग चुनावी चर्चा में मशगूल अपनी बेबाक राय रख रहे थे।
विमलेश सिंह गहमरी का कहना था कि इस बार चुनाव में बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, राष्ट्र सुरक्षा, विकास सरीखे राष्ट्रीय मुद्दों के बीच नेताओं की अमर्यादित भाषा सामने आयी है। पहले नेता जो वादा करते थे, उसे पूरा करते थे। सियासत में संस्कृति, सभ्यता और शालीनता का भी ख्याल रखा जाता था, अब ऐसा नहीं है। नेता परस्पर भाषा की मर्यादा तोड़ने के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दों पर भी राजनीति करने से बाज नहीं आते, जो हितकर नहीं है। इतना सुनते ही वाल्मीकि सिंह ने कहा कि पार्टी कोई भी हो नेता अपनी जुबान पर कंट्रोल नहीं कर पा रहे हैं। जो नेता अमर्यादित बात कर रहे हैं, उन पर बैन लगा देना चाहिए कि वे आजीवन चुनाव न लड़ सकें। उनके बदजुबानी से हमारे देश की छवि खराब हो रही है। बारा गांव के इकबाल खां का कहना था कि नेता अपने मुद्दों से भटक गए हैं। वे सिर्फ एक- दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। चुनाव मुद्दों पर लड़ा जाना चाहिए न की जाति, धर्म और मजहब के नाम पर। हालांकि कुछ नेता ऐसे हैं जो सिर्फ मुद्दों, विकास और रोजगार की बात करते हैं। मगर अधिकांश अपना वोट बैंक बढ़ाने के चक्कर में जाति-धर्म की बात कर जनता को गुमराह कर रहे हैं। लक्ष्मीकांत उपाध्याय ने कहा कि नेता जाति- धर्म के नाम पर समाज को बांट रहे हैं। इससे लोगों के बीच दूरियां बढ़ रही हैं। सचितानंद चौरसिया का कहना था कि पहले और अब के चुनावों में काफी अंतर आ गया है। पहले नेता शालीनता से लोगों के घर-घर जाकर वोट मांगते थे। लेकिन, अब तो धन-बल का चुनाव हो गया है। इसी बीच बारा के जावेद खां बोल पड़े कि हमारा देश कृषि प्रधान देश है। किसानों के साथ चुनाव में वादे तो किए जाते हैं, लेकिन चुनाव बाद नेता भूल जाते हैं। इसी बीच पूर्व प्रधान बारा मंजूर खां बोले कि जनता विकास, योजनाओं और अपनी समस्याओं को सामने रख कर सरकार को चुनती है। लेकिन, सरकार बनने के बाद नेता सब भूल जाते हैं। वैसे यह चर्चा काफी देर से जारी थी। मगर समय का ख्याल आते ही सारे लोग चाय दुकान से अपने घर की ओर मुखातिब हो गए।