चिकित्सकों ने किया इलाज से इन्कार, काम आया बेटे का प्यार
जागरण संवाददाता सैदपुर (गाजीपुर) पुत्र और पिता के प्यार की तमाम कहानियां चर्चित हैं।
जागरण संवाददाता, सैदपुर (गाजीपुर) : पुत्र और पिता के प्यार की तमाम कहानियां चर्चित हैं। किसी ने कंधे पर टांग पर माता-पिता को तीर्थ यात्रा कराया है तो किसी ने अपना रक्त देकर उनकी जान बचाई है। वैश्विक महामारी कोरोना में कुछ ऐसे ही श्रवण कुमार निकले हैं, जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बगैर माता-पिता की सेवा की है। उन्हीं में से एक नगर के वार्ड 12 निवासी युवक सूरज जायसवाल हैं। नगर के वार्ड 12 निवासी काशीनाथ जायसवाल के तीन पुत्र हैं। बड़े पुत्र राजेश जायसवाल एवं राकेश जायसवाल शादी के बाद परिवार बढ़ने पर सबकी रजामंदी से घर से कुछ दूरी पर मकान बनवाकर रहने लगे। छोटा पुत्र सूरज अपनी पत्नी व बच्चों के साथ माता-पिता के साथ रहते हैं। कोरोना के द्वितीय चरण का भयंकर प्रकोप शुरू हुआ तो 15 अप्रैल को काशीनाथ जायसवाल व उनकी पत्नी निर्मला देवी संक्रमित हो गए। इसमें पिता की हालत ज्यादा बिगड़ी तो सूरज उन्हें लेकर वाराणसी पहुंचे और कई अस्पतालों का चक्कर लगाते रहे, लेकिन कहीं भी एडमिट नहीं किया गया। निराश होकर वह सैदपुर आए और एक निजी अस्पताल में प्राइवेट रूम लेकर किसी तरह पिता को भर्ती कराया। मगर कोरोना का भय इस कदर था कि चिकित्सक छूने को तैयार नहीं थे। ऐसे में सूरज ने खुद कदम बढ़ाया। चिकित्सक दूर से पूरी सलाह देते थे और दवा बताते थे। पिता का आक्सीजन लेबल 73 आ गया तो सिलेंडर की व्यवस्था कर सूरज ने स्वयं ही चिकित्सकों से राय लेकर किट के जरिए आक्सीजन लगाना शुरू किया। करीब 10 दिनों तक अस्पताल में इंजेक्शन लगाने के साथ ही दवा व आक्सीजन लगाते रहे। 10 दिन बाद पिता की हालत में सुधार हुआ तो सूरज उन्हें घर ले आया। घर पर ही एक कमरे में आक्सीजन सिलेंडर समेत सभी आवश्यक व्यवस्था की और लगातार चिकित्सक की सलाह पर दवा देते रहे। 20 दिन बाद पिता पूरी तरह स्वस्थ हुए। उधर, मां निर्मला देवी घर पर ही आइसोलेट होकर एक सप्ताह में ठीक हो गईं।