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पार्टी का झंडा बांधते देखा, तो कार रुकवा कर कल्याण सिंह ने थपथपाई पीठ

अजय सक्सेना लोनी आजादी के बाद नेताओं ने राजनीति देश के हित और क्षेत्र को विकास की डगर

By JagranEdited By: Published: Mon, 24 Jan 2022 07:59 PM (IST)Updated: Mon, 24 Jan 2022 07:59 PM (IST)
पार्टी का झंडा बांधते देखा, तो कार रुकवा कर कल्याण सिंह ने थपथपाई पीठ
पार्टी का झंडा बांधते देखा, तो कार रुकवा कर कल्याण सिंह ने थपथपाई पीठ

अजय सक्सेना, लोनी : आजादी के बाद नेताओं ने राजनीति देश के हित और क्षेत्र को विकास की डगर पर ले जाने को शुरू की थी। नेता न केवल पार्टी के लोग बल्कि प्रतिद्वंदी के सम्मान का पूरा ध्यान रखते थे। कार्यकर्ता सम्मान के लिए निष्ठा से पार्टी के हित में काम करते थे। नेता भी उन्हें सम्मान देते पीछे नहीं हटते थे। मंडोला गांव में 82 वर्षीय बेलीराम त्यागी राजनीति के दौरान मिले कुछ ना भूलने वाले किस्सों को याद कर परिवार के साथ जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

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ढलती उम्र में अब बेलीराम त्यागी की आंखें भले ही चश्मे के बिना न देख पाती हो पर जीवन में उन्होंने कई उतार चढ़ाव देखे हैं। वह बताते हैं 1957 में जब विधानसभा का चुनाव हुआ तब उनकी उम्र महज 17 वर्ष थी। पिता से अनुमति लेकर बैलगाड़ी से चुनाव प्रचार में गए थे। युवाओं को रुपये, शराब आदि का लालच नहीं था। वह बैलगाड़ी के बैलों को चारा भी अपने खर्च से खिलाते थे। आज तो प्रचार के नाम पर रुपये की ललक देखने को मिलती है।

थपथपाई पीठ : बेलीराम त्यागी बताते हैं कि 1991 विधानसभा चुनाव के दौरान वह धूप में स्कूल के बाहर खंभे पर भाजपा का झंडा बांध रहे थे। तभी प्रचार करने जा रहे कल्याण सिंह का काफिला निकला। उन्हें देखकर कल्याण सिंह ने कार को रुकवा दिया। वह कार से नीचे उतर कर उनके पास पहुंचे। चुनाव प्रचार के बारे में बातचीत की। जिसके बाद पार्टी के प्रति श्रद्धा देखकर कल्याण सिंह ने उनकी पीठ थपथपाई। इस वाक्ये को याद कर उनकी आंखें आज भी चमचमा उठती हैं।

दो घंटे में हो गया चुनाव : बेलीराम त्यागी बताते हैं कि पहले पूरे दिन मतदान नहीं होता था। मतदान के लिए समय और स्थान तय कर दिया जाता था। समय पर पहुंचने वाले अपना मतदान कर देते थे। जो बताए समय पर नहीं पहुंच पाते थे। उनकी वोट नहीं पड़ती थी। 1952 और 1957 का विधानसभा चुनाव परिवार रजिस्टर से महज दो घंटे में समाप्त हो गए थे। वह बताते हैं कि राजनीति में नेता द्वेष नहीं मानते थे। चुनाव में जिसकी जीत होती थी, वह हारे हुए प्रत्याशियों को साथ लेकर विकास के मुद्दों पर चर्चा करता था।


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