रामायण और महाभारत काल की याद दिलाने वाले मंदिर से होगी डासना की पहचान
जागरण संवाददाता गाजियाबाद मान्यता है कि यहां पर रावण के पिता ऋषि विश्रवा एक बार तपस्या क
जागरण संवाददाता, गाजियाबाद: मान्यता है कि यहां पर रावण के पिता ऋषि विश्रवा एक बार तपस्या कर रहे थे। लंबे समय तक एक ही आसन में बैठने के कारण उनके शरीर में जख्म हुए जो इस तालाब में नहाने से ठीक हुए। मान्यता है कि इस तालाब में नहाने से चर्म रोग ठीक हो जाता है। यह कहना है डासना गांव के निवासियों का। जो चाहते हैं कि गांव एक पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित हो। इसके इतिहास के बारे में आने वाली पीढि़यों को जानकारी हो सके। ग्रामीणों ने बताया कि तालाब के पास ही एक शिवलिग है, जिसके बारे में मान्यता है कि शिवलिग को राजा भागीरथ ने स्थापित किया था। इसके बाद महाभारत काल में वनवास के दौरान पांडव भी यहां रुके और शिवलिग की पूजा की। तालाब के पास ही काली माता की एक मूर्ति है, जो कसौती पत्थर से बनाई गई है। ये मूर्ति उस समय की है जब मूर्तिपूजा की शुरूआत की गई थी। ऐसी सिर्फ चार मूर्ति हैं, जिनमें से एक मूर्ति डासना में दूसरी कलकत्ता में, तीसरी कामाख्या और चौथी हिगलाज में जो कि अब पाकिस्तान का हिस्सा है, वहां है। इसलिए डासना को अब पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की तैयारी जिला प्रशासन ने की है। शेर करता था देवी मां की पूजा: मंदिर में ही देवी मां की मूर्ति के पास ही एक शेर की समाधि है। कहा जाता है कि एक जमाने में जब यहां वन था, उस वक्त जब लोग देवी मां की पूजा करने के लिए आते थे तो यहां एक शेर भी आता था। वह पूजा के समय तक यहां पर रहता था। अंत समय में शेर ने अपने प्रण भी देवी मां की मूर्ति के सामने त्यागे। इसलिए यहां शेर की समाधि है। मुगलकाल में तालाब में छिपा दी गई थी मूर्ति : ग्रामीण कहते हैं कि मुगलकाल में जब दिल्ली तक मुगलों का कब्ज हो गया तो उनको डासना में कसौती पत्थर से बनी देवी मां की मूर्ति के बारे में जानकारी हुई, वे इस मूर्ति को ले जाना चाहते थे लेकिन उस वक्त जो पुजारी यहां पर थे, उन्होंने मूर्ति को तालाब में छिपा दिया था। इसके बाद जब मुगलों का राज खत्म हुआ तो बाबा जगतगिरी जी महाराज को एक दिन सपने में देवी मां नजर आईं, उन्होंने तालाब में मूर्ति होने की जानकारी दी। जगतगिरी महाराज ने तालाब से मूर्ति निकलवाई और मंदिर में स्थापित की। इसके बाद वह यहां पर रहकर पूजा अर्चना करने लगे और अंत में यहीं पर जीवित रहते हुए समाधि ले ली। मंदिर के अंदर ही जगतगिरी महाराज की भी समाधि है। लखौरी ईटों का हुआ है निर्माण कार्य में इस्तेमाल: एनएच-9 से सटे डासना गांव में स्थित शिव शक्ति धाम करीब 60 बीघे में हैं। इस धाम को प्राचीन देवी व महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है। यहां पर बनी दीवारों में आज भी लखौरी ईटें नजर आती हैं। देश विदेश से आएंगे साधू-संत: मंदिर प्रबंधक अनिल यादव का कहना है कि मंदिर समिति की आरे से मंदिर में विश्व सनातन संसद बनाने का कार्य भी करवाया जाएगा। 20-21 फरवरी को भूमिपूजन किया जाएगा। विश्व सनातन संसद बनने से यहां पर साधू-संत व धर्माचार्य भी अधिक संख्या में देश और विदेश से आएंगे। इसके अलावा मंदिर परिसर में ही अखाड़ा तैयार किया जा रहा है। जहां पर बच्चों और युवाओं को कुश्ती सिखाई जाएगी। बच्चों और युवाओं को धार्मिक ग्रंथों के बारे में जानकारी दी जाएगी। संस्कार का पाठ पढ़ाया जाएगा। परिचर्चा
मैं मुंबई से यहां पर दर्शन करने के लिए आई हूं। मंदिर के बारे में प्रचार-प्रसार कराया जाना चाहिए, जिससे की ज्यादा से ज्यादा लोगों को जानकारी हो सके।- श्वेता, श्रद्धालु मंदिर काफी पुराना है, यह रामायण और महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। यहां पर हमारे बुजुर्ग भी पूजा-अर्चना करने के लिए आते थे। जिला प्रशासन अगर इसे पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित करेगा तो अच्छा होगा। डासना की अलग पहचान होगी।
- बृजमोहन, डासना निवासी। मंदिर का प्रचार प्रसार कराने के साथ ही यहां पर वेद विद्यालय का निर्माण कार्य मंदिर समिति की ओर से कराया जाएगा। मंदिर काफी पुराना है, इसके संरक्षण के लिए जिला प्रशासन द्वारा कदम उठाया जाना चाहिए। - यति नरसिंहानंद सरस्वती, महंत, शिव शक्ति धाम बयान जनपद के प्रत्येक गांव के इतिहास के बारे में जानकारी की गई, डासना गांव के इतिहास के बारे में भी जानकारी हुई है। गांव को पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित करने का प्रयास किया जाएगा।
- अजय शंकर पांडेय, जिलाधिकारी