संशोधित : हर मुश्किल को मात देती है एनडीआरएफ टीम
हसीन शाह गाजियाबाद आपदा के समय राहत और बचाव कार्य कर लोगों की जान बचाने और वहां के
हसीन शाह, गाजियाबाद : आपदा के समय राहत और बचाव कार्य कर लोगों की जान बचाने और वहां के हालात को सामान्य बनाने का काम राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) बखूबी कर रहा है। अभी सात फरवरी को ही उत्तराखंड के चमोली में ग्लेशियर फटने के कारण भारी तबाही हुई है। तपोवन हाइड्रो प्रोजेक्ट का बांध टूट गया और सुरंग मलबे से भर गई है। इसके बाद गाजियाबाद से एनडीआरएफ की टीम वहां पहुंची। वहां टीम पहली बार सुरंग में बचाव कार्य कर रही है। सुरंग में आक्सीजन की कमी है। इस हालात में जीवित लोगों को तलाशना, साथ में क्षत-विक्षत शवों के साथ लाखों टन मलबे को निकालना बड़ी चुनौती है। शवों को देख कोई भी गमजदा हो जाता है। लेकिन, एनडीआरएफ के जवान के लिए जिदगी बचाने के जज्बे के सामने कोई भी हालात मायने नहीं रखते।
राहत कार्य में जुटी हैं पांच टीमें
बटालियन के मीडिया प्रभारी वसंत पावडे ने बताया कि एनडीआरएफ की आठवीं बटालियन की पांच टीमें चमोली आपदा में में काम कर रही हैं। 200 जवान दिन-रात बचाव कार्य में जुटे हैं। तपोवन में एनटीपीसी के निर्माणाधीन हाइड्रो प्रोजेक्ट की सुरंग में मलबा ज्यादा होने कारण बचाव कार्य में दिक्कत आ रही है। वहां आक्सीजन सिलेंडर लगाकर काम किया जा रहा है।
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जान बचाने के लिए हाथ से भी हटा रहे मलबा
सुरंग में बड़े उपकरणों का इस्तेमाल करने से जीवित व्यक्ति को मौत का खतरा है। जब टीम को अंदेशा होता कि इस स्थान पर कोई व्यक्ति फंसा हो सकता हैं तो वहां पर बड़ी मशीन के स्थान पर फावड़े व अन्य छोटे उपकरण से मलबे को हटा रहे हैं। ऐसे में मलबे को हाथ से भी हटाना पड़ रहा है।
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परमाणु बम के हमले के दौरान बचाव कार्य की ट्रेनिग
एनडीआरएफ के जवानों को परमाणु बम के हमले के दौरान बचाव कार्य का भी प्रशिक्षण दिया जाता है। साथ ही रासायनिक और जैविक हथियारों से हमले के दौरान जिदगी कैसे बचाएं, इसकी भी इन्हें ट्रेनिग दी जाती है। जाहिर है हर परिस्थितियों में काम करने का उन्हें प्रशिक्षण दिया जाता है। जवानों को पहले चरण में सामान्य आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण दिया जाता है। दूसरे चरण में आपदा प्रबंधन में इस्तेमाल होने वाले उपकरण की जानकारी दी जाती है। तीसरे चरण में सुरक्षा और आखिरी चरण में परमाणु बम के हमले में बचाव कार्य की ट्रेनिग दी जाती है। -----
चमोली आपदा
सात फरवरी को चमोली नंदा देवी नेशनल पार्क के अंतर्गत कोर जोन में स्थित ग्लेशियर फटने के कारण रैणी गांव के पास ऋषि गंगा तपोवन हाइड्रो प्रोजेक्ट का बांध टूट गया। तपोवन-विष्णुगाड सुरंग में फंसे लोगों को बाहर निकालने के लिए सेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और आइटीबीपी का संयुक्त बचाव अभियान चल रहा है। जलस्तर बढ़ने के बाद यहां एक पूरी सुरंग मलबे से भर गई है।
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अत्याधुनिक उपकरणों से लैस है एनडीआरएफ
एनडीआरएफ टीम के पास अत्याधुनिक उपकरण हैं। विक्टिम लोकेटिग कैमरा बहुत मददगार साबित हो रहा है। इससे मलबे में दबे लोगों की लोकेशन का पता लगाया जा रहा है। लाइव डिटेक्टर का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। यह उपकरण हार्टबीट को डिटेक्ट करता है। मगर जवानों के पास भीषण ठंड से बचाव के लिए न्योप्रिन सूट नहीं है। यह सूट शरीर के तापमान को नियंत्रित करने में काम आता है। इसे पहनने से ठंड में परेशानी नहीं होती है।
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सुरंग के भीतर सीमित उपकरण ही काम कर पा रहे हैं। इस वजह से बचाव कार्य में देरी हो रही है। हमारे जवान दिन-रात काम कर रहे हैं। जितना मलबा हटाते, उतना मलबा और आ जाता है। हमारे पास आठ खोजी कुत्ते हैं। इन कुत्तों का भी बचाव कार्य में अहम किरदार है। आठवीं बटालियन पर उत्तराखंड, दिल्ली, हरियाणा व उत्तर प्रदेश में आपदा होने पर बचाव कार्य की जिम्मेदारी है, लेकिन आपात स्थिति में टीम विदेश (नेपाल) तक भी गई है।
- पीके तिवारी, कमांडेंट, आठवीं बटालियन एनडीआरएफ