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भूजल दोहन पर एनजीटी सख्त, बिल्डर का बोरवेल होगा नष्ट

जागरण संवाददाता गाजियाबाद भूजल दोहन को लेकर अब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) सख्त हो गया

By JagranEdited By: Published: Tue, 13 Apr 2021 10:10 PM (IST)Updated: Tue, 13 Apr 2021 10:10 PM (IST)
भूजल दोहन पर एनजीटी सख्त, बिल्डर का बोरवेल होगा नष्ट
भूजल दोहन पर एनजीटी सख्त, बिल्डर का बोरवेल होगा नष्ट

जागरण संवाददाता, गाजियाबाद : भूजल दोहन को लेकर अब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) सख्त हो गया है। इसी क्रम में एनजीटी ने गाजियाबाद के एक बिल्डर के बोरवेल को स्थायी रूप से नष्ट करने के निर्देश दिए हैं, साथ ही निर्माण कार्यों के लिए पीने योग्य पानी के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने का भी निर्देश दिया है। बिल्डर द्वारा ऐसा न किए जाने की स्थिति में जिला प्रशासन को सख्ती के साथ निर्देशों का पालन करने को कहा गया है।

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एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने एक समिति की ओर से दायर एक रिपोर्ट को स्वीकार करने से मना करने के बाद यह आदेश दिया है। इस रिपोर्ट में पाया गया कि पीने योग्य पानी का निर्माण कार्यों में अवैध नलकूप के जरिये उपयोग किया जा रहा है। एनजीटी ने निर्देश दिया है कि एक ही समिति कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए एक महीने के भीतर मुआवजे का आकलन भी कर सकती है। उचित समय के भीतर यदि मुआवजे का भुगतान नहीं किया जाता है तो राज्य स्तर पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अपने स्तर पर उपाय कर सकता है। इसमें जल प्रदूषण और प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम- 1974 और वायु प्रदूषण पर नियंत्रण और नियंत्रण अधिनियम- 1981 के तहत कार्रवाई संभव है। पीठ ने कहा कि डीएम गाजियाबाद द्वारा अवैध बोरवेलों को सील किया जा सकता है। ट्रिब्यूनल ने पहले केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राज्य पीसीबीए, जिला मजिस्ट्रेट,गाजियाबाद, केंद्रीय भूजल प्राधिकरण और उत्तर प्रदेश के अधिकारियों की एक समिति गठित करते हुए एक तथ्यात्मक और कार्रवाई की रिपोर्ट मांगी थी।

ट्रिब्यूनल राजपाल सिंह कंधारी और अन्य द्वारा सिद्धार्थ विहार गाजियाबाद में बिल्डर प्रतीक ग्रैंड सिटी के लिए भूजल के अवैध निकासी के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था। याचिका के अनुसार भूजल निष्कर्षण केंद्रीय भूजल प्राधिकरण दिशा-निर्देश 2015 का उल्लंघन है और परियोजना प्रस्तावक ने कई बोरवेल खोदे हैं। भूजल उपलब्धता के लिहाज से यह क्षेत्र महत्वपूर्ण है। याचिका में कहा गया है कि पेयजल को छोड़कर भूजल के निष्कर्षण की कोई अनुमति नहीं दी गई है और न ही दी जा सकती है। परियोजना के लिए पर्यावरणीय मंजूरी भी इस शर्त के अधीन है कि निर्माण के लिए भूजल नहीं निकाला जाएगा।


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