Yuvashakti: बीटेक करने के बाद देश की सुरक्षा कर रहीं कामाक्षी, बना दी है साइबर सुरक्षा की 'फौज'; कश्मीर में सेना की कर चुकी हैं मदद
गाजियाबाद की कामाक्षी शर्मा ने बीटेक किया है। पढ़ाई करते हुए कंप्यूटर साइंस में रुचि गहरी हुई और फिर इसी क्षेत्र में आगे बढ़ने का निर्णय कर लिया। साइबर अपराधों के गहराते खतरों के बीच वह साइबर सुरक्षा में सक्षम 50000 से अधिक पुलिसकर्मियों की फौज बना चुकी हैं।
गाजियाबाद [शाहनवाज अली]। बीटेक में एडमिशन लेने तक वह किसी सामान्य युवती की तरह ही पढ़ाई के बाद एक नौकरी का लक्ष्य लेकर चल रही थीं। पढ़ाई करते हुए कंप्यूटर साइंस में रुचि गहरी हुई और फिर इसी क्षेत्र में आगे बढऩे का निर्णय कर लिया। किताबों से ज्ञानार्जन किया और प्रैक्टिकल करके उसे परखा।
साइबर अपराधों के गहराते खतरों के बीच देश में आज वह साइबर सुरक्षा में सक्षम 50,000 से अधिक पुलिसकर्मियों की फौज बना चुकी हैं। यहां बात हो रही है गाजियाबाद निवासी कामाक्षी शर्मा की। पुलिस से लेकर सेना तक उनकी मदद लेती है। वह साइबर अपराध से जुड़े गूढ़ केस हल करती हैं, जिनमें भारत-पाकिस्तान सीमा पर आतंकियों के तंत्र को तोडऩे जैसा अतिकठिन कार्य भी शामिल है।
लक्ष्य साफ है, विश्व में एक ऐसी व्यवस्था बनानी है कि पुलिसकर्मियों को सरल भाषा और तरीके से साइबर अपराध के मामले हल करने में दक्षता मिल सके और आमजन को यह ज्ञान कि कैसे साइबर अपराधों से खुद की सुरक्षा करनी है।
थाने जाकर पता करती थीं साइबर केस
कामाक्षी की कहानी शुरू होती है, वर्ष 2018 से जब वह इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल कर चुकी थीं, लेकिन जाब करने का मन नहीं था। मन तो था देश को साइबर अपराधों से सुरक्षित करने का, इसलिए गाजियाबाद में पुलिस थानों में जातीं और अपनी मंशा जताकर ऐसे साइबर केस में मदद की पेशकश करतीं।
शुरुआत में असफलता मिली, लेकिन बाद में सिहानी गेट कोतवाली के थाना प्रभारी विनोद पांडेय ने उन्हें एक साइबर केस दिया, जिसे कामाक्षी ने हल किया। इसके बाद दिल्ली के अतिरिक्त पुलिस कमिश्नर राजपाल डबास ने भी केस दिए।
उत्तर प्रदेश पुलिस के विनोद सिरोही के साथ कामाक्षी ने कई केस पर काम किया। यहां से जो सिलसिला आरंभ हुआ, वह अब तक जारी है। वर्ष 2019 में नेशनल पुलिस ग्रुप मिशन के अंतर्गत जम्मू से कन्याकुमारी तक भारतीय पुलिस सेवा व प्रांतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों सहित लगभग 50 हजार पुलिसकर्मियों को साइबर अपराध की जांच का प्रशिक्षण दे चुकी हैं, जिसके लिए उनका नाम वर्ल्ड बुक आफ रिकार्ड में दर्ज हो चुका है। अब उनके जीवन पर बायोपिक बनाने की तैयारी शुरू हो गई है।
कश्मीर का केस सबसे विशेष
कामाक्षी के लिए कश्मीर का केस सबसे खास है। इस केस में भारत-पाकिस्तान सीमा के एक गांव में आतंकियों की बातचीत को तमाम प्रयासों के बावजूद सेना के साइबर विशेषज्ञ ट्रेस नहीं कर पा रहे थे। आतंकी पाकिस्तानी एप्लीकेशन के माध्यम से बातचीत कर रहे थे।
आतंकियों के तंत्र को तोडऩे के लिए कामाक्षी की मदद ली गई, जिसमें उन्होंने आतंकियों द्वारा बातचीत में इस्तेमाल की जा रही एप्लीकेशन को ट्रेस किया और आतंकियों की लोकेशन की जानकारी सेना को दी। डार्क वेब पर ड्रग्स तस्करी और आतंकी गतिविधियों, आनलाइन ठगी, हत्या, लूट समेत करीब सैकड़ों केस में पुलिस की मदद की।
नेशनल पुलिस ग्रुप मिशन के अंतर्गत जम्मू से कन्याकुमारी तक पुलिसकर्मियों को प्रशिक्षण देने का काम सौंपा गया। उन्होंने एडवांस तकनीक के माध्यम से बिना कोडिंग केस हल करने का आसान भाषा में प्रशिक्षण दिया जिससे वह अपने स्तर पर केस हल करने योग्य बने।
कामाक्षी की उपलब्धियों को देख धाकड़ फेम निर्माता दीपक मुकुट ने उनकी बायोपिक बनाने की तैयारी शुरू की है। बायोपिक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रिलीज करने की योजना है ताकि साइबर अपराध की रोकथाम में भारत का नाम विश्व पटल पर चमके।