यूपी चुनाव 2022: मजहब नहीं, सुरक्षा और काम है इन मुस्लिमों के लिए चुनावी मुद्दा
गाजियाबाद शाहरुख अहमद ने तब स्नातक किया था जब अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। उनके लिए उत्तर प्रदेश विधानसभा का यह चुनाव रोजगार के साथ-साथ सुरक्षा के अहसास की कसौटी भी है। कहते हैं-पढ़ना-लिखना आप पर निर्भर करता है।
गाजियाबाद [मनीष तिवारी]। गाजियाबाद शाहरुख अहमद ने तब स्नातक किया था जब अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। उनके लिए उत्तर प्रदेश विधानसभा का यह चुनाव रोजगार के साथ-साथ सुरक्षा के अहसास की कसौटी भी है। कहते हैं-पढ़ना-लिखना आप पर निर्भर करता है। सरकारें साधन उपलब्ध करा सकती हैं, लेकिन पढ़ना और आगे बढ़ना आप पर निर्भर है। शाहरुख को सबसे बड़ा संतोष उत्तर प्रदेश में अपराधियों पर नकेल कसे जाने का है। वह इसे चुनाव में बड़ा मुद्दा मानते हैं और थोड़ा खुलने के बाद बेझिझक यह भी कह देते हैं कि योगी के राज में कहां मुस्लिमों पर जुल्म हुआ है।
जो लोग मुस्लिमों के आगे भाजपा का हौवा खड़ा करते थे, वे गलत साबित हुए हैं। अगर मुस्लिमों ने साथ नहीं दिया होता तो क्या पिछले चुनाव में भाजपा को इतनी कामयाबी मिलती। गाजियाबाद के लोनी विधानसभा क्षेत्र के कासिम विहार में शाहरुख जैसे कई युवा हैं। सियासत पर ध्यान देते हैं, लेकिन चुनाव पर खुलकर बोलना नहीं चाहते। चुनाव की क्या हलचल है, इस सवाल पर एकदम से अचकचा जाते हैं जैसे कोई पूछताछ करने आ गया हो। यह पूरा मुस्लिम बहुल गांव है-बड़ी संख्या में बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश से आए श्रमिकों को अपने भीतर समेटे हुए। उन्हीं में से एक बुजुर्ग ने कैसा चल रहा है चुनाव वाले सवाल पर जवाब दिया-रेत की दीवार की तरह है जनता का मिजाज, कोई क्या जाने..।
फिर जब आसपास के लोगों ने विकास, माहौल, भ्रष्टाचार और जाति-मजहब की बातें छेड़ीं तो इस दीवार की ईंटें बनने लगीं। आपस में ही बहस तेज हो गई। स्थानीय राजनीति से लेकर योगी और सपा के चेहरे अखिलेश यादव तक चर्चा में आ गए। हालांकि, जाति और मजहब की राजनीति को नकारा गया। रोजी-रोटी के लिए अपना घर छोड़कर आए लोगों में से एक हैं भागलपुर के मोहम्मद वसीम, जिनकी तिराहे पर चाय की दुकान है।
वसीम को इतना पता है कि सांप्रदायिक दंगे से बुरा कुछ नहीं होता। वह कहते हैं-पांच साल का था जब मैंने अपने घर के आसपास सांप्रदायिक हिंसा देखी थी। लोग लड़ाना चाहते हैं, लेकिन हमें विकास के मुद्दों पर मतदान करना चाहिए। जब हम मजहब के नाम पर वोट देते हैं तो अपना ही नुकसान करते हैं। कहते हैं कि हमारी समस्या तो दुकान के सामने भरा कीचड़ वाला पानी है, लेकिन जब उनसे यह कहा जाता है कि यह तो पार्षद का काम है, विधायक का नहीं तो खामोश हो जाते हैं।
फिर बातों-बातों में यह बोल जाते हैं कि पिछले पांच साल में विकास तो हुआ है। यहीं के रहने वाले मकसूद राजमिस्त्री हैं, कहते हैं कि पांच साल में महंगाई तो बढ़ी, लेकिन काम बंद नहीं हुआ। सुरक्षा के सवाल पर कहते हैं कि अब माहौल बदल रहा है। रात में बेटियों को घर से बाहर निकलने पर डर नहीं लगता। हालांकि एक लंबी सांस लेकर कहते हैं कि साहब। हमारी लोनी बहुत समृद्ध और उपजाऊ है। बस सियासी दलों ने इसका अपने अपने फायदे के लिए ही इस्तेमाल किया है। खुशहाल पार्क, मुस्तफाबाद कालोनी, प्रेम नगर, अशोक विहार, पूजा कालोनी में लोगों की कमोबेश यही राय है।