ट्रेन का संचालन रुकने से बदला अनुभव, पहले सीटी की आवाज सुनकर रखते थे रोजा
माह ए रमजान में ये लोग रात को तीन बजे सहरी में अमृतसर से बिलासपुर जानेवाली छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस ट्रेन की सिटी सुनकर उठ जाते थे।
गाजियाबाद [हसीन शाह]। ट्रेनों का संचालन बंद होने पर रेलवे लाइन के आस-पास रहने वाले लोग पहली बार खास अनुभव से गुजर रहे हैं। यहा रेलवे लाइन के आस-पास बड़ी संख्या में मुस्लिम आबादी रहती है। माह ए रमजान में ये लोग रात को तीन बजे सहरी में अमृतसर से बिलासपुर जानेवाली छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस ट्रेन की सिटी सुनकर उठ जाते थे। मगर अब मुनादी की आवाज सुनकर भी आंख नहीं खुलती है। इन लोगों को ट्रेन की बहुत याद सताती है।
माह ए रमजान में रोजा रखने के लिए रात का ढ़ाई से तीन बजे की बीच उठना पड़ता है। एक महीने के लिए लोगों को छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस ट्रेन की सिटी के साथ उठने की आदत बन जाती थी। कई दशकों में पहली बार ये लोग बिना ट्रेन की आवाज सुनकर रोजा रख रहे हैं। अब सहरी मे उठने के लिए मोबाइल में अलार्म लगाकर सोना पड़ रहा है। पड़ोसी एक दूसरे को फोन कर उठाते हैं। इसके अलावा रात में कई अन्य ट्रेनें भी चलती थी, मगर इससे किसी की नींद खराब नहीं होती थी। अब ट्रेन नहीं चलने पर इन लोगों में अजीब बेचैनी हैं। घर भी सूनसान लग रहा है। अब कई-कई दिन में मालगाड़ी आती है, जिसकी आवाज कम होती है।
ट्रेन की आवाज पर बच्चे खिलखिलाते थे
ट्रेन की आवाज सुनकर घरों में छोटे बच्चों को ज्यादा खुशी होती थी। रोते हुए बच्चे ट्रेन की सिटी सुनकर चुप हो जाते थे। कई बार तो रोते हुए बच्चों को चुप कराने के लिए महिलाओं को बच्चों को घरों की छतों पर चढ़कर उन्हें ट्रेन दिखाती थी। ट्रेन की आवाज सुनकर वह खिलखिला उठते थे। यहां रहने वाले लोगों को तो ट्रेन की आवाज के साथ सोने की आदत बनी हुई है। मगर घर आने वाले परिचितो और रिश्तेदारों को ट्रेन के शोर से नींद नहीं आती थी। रात में बहुत कम रिश्तेदार रुकते थे।
अमृतसर से बिलासपुर जानेवाली छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस से शुरू होता था दिन
एक रोजेदार मोहम्मद शान ने कहा, "मैं रेलवे लाइन के पास रहता हूं। रात में लगभग तीन बजे छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस ट्रेन जाती थी। इसकी आवाज सुनकर मेरा परिवार उठ जाता था।"
एक अन्य रोजेदार हसरत अली ने कहा, "ट्रेन की आवाज मेरे जीवन का हिस्सा बन गई थी। माह ए रमजान में ट्रेन की सीटी बहुत याद आती है। मैं सिटी सुनकर रोजा रखता था।"