सावधान, औद्योगिक इकाइयां कर रही फेफड़ों को संक्रमित
औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले गैसीय वायु-प्रदूषण तत्व गैस के समान व्यवहार करते हैं और एक स्थान पर एकत्र होकर वायुमंडल में फैल जाते हैं। इससे गैसीय प्रदूषक औद्योगिक एवं घरेलू कार्यों में ईंधन जलाने पर बनते हैं।
गाजियाबाद [ आशुतोष यादव ] । महानगर के विकास और राजस्व बढ़ाने वाली औद्योगिक इकाइयां पूरे देश के लिए गौरव बन रही है, लेकिन शहर के वांसिदों के लिए इन औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला जहरीला धुंआ अभिशाप बन रहा है। जिले में छोटी-बड़ी 1000 फैक्ट्रियां संचालित हैं, इसमें 38 बड़े स्तर की हैं।
इसके अलावा मीडियम व लघु इकाईयों हैं। इसमें नेशनल ह्यूमन राइट कमीशन को दी गई रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल 130 थीं और इस साल 318 फैक्ट्रियां ऐसी हैं जो प्रदूषण को बढ़ावा दे रही हैं इसके अलावा 357 ईंट भट्टे भी संचालित हैं हालांकि प्रशासन का दावा है कि जिले में सभी ईंट भट्टे बंद हैं।
औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले गैसीय वायु-प्रदूषण तत्व गैस के समान व्यवहार करते हैं और एक स्थान पर एकत्र होकर वायुमंडल में फैल जाते हैं। इससे गैसीय प्रदूषक औद्योगिक एवं घरेलू कार्यों में ईंधन जलाने पर बनते हैं। औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाली गैसों से कई तरह के दुष्प्रभाव शरीर को प्रभावित करते हैं।
सल्फर डाइऑक्साइड: शरीर में उपलब्ध द्रव घुलनशील होता है, इसके कारण ऊतकों में उत्तेजना पैदा होती है, ऊपरी श्वसन-पथ में जलन व उत्तेजना होती है। नाइट्रोजन मोनो आक्साइड: ये वायु-प्रदूषण उत्पन्न करते हैं। ये हाइड्रोकार्बन से मिलकर घना धुआं तथा ओजोन पैदा करते हैं। इसके कारण आंखों में जलन व श्वसन क्रिया में अवरोध उत्पन्न होता है।
कार्बन मोनोऑक्साइड : मूलत: वाहनों में अपूर्ण ज्वलन से बनने वाली एक अ²श्य गैस है। यदि यह रक्त में मिल जाए तो चक्कर आने लगते हैं, विभिन्न शारीरिक अंगों की सक्रियता में कमी आती है व मृत्यु की भी संभावना बनी रहती है।
इनसे हो सकता है प्रदूषण नियंत्रण
1- उद्योगों द्वारा उत्पन्न वायु प्रदूषकों का निरंतर मॉनीटर तथा उसके निकटवर्ती क्षेत्रों की वायु का प्रेक्षण।
2- ऐसी प्रक्रियाओं और तकनीकों का विकास, जो कम विषैले पदार्थों का इस्तेमाल करें और जो स्रोत से निकलने वाले प्रदूषकों की मात्रा को कम कर सकें।
3- उद्योगों में प्रदूषक-नियंत्रक संयंत्रों को लगाया जाए।
4- उद्योग को किसी विशेष स्थान पर स्थापित न करके देश के अलग-अलग क्षेत्रों में स्थापित किया जाए।
5- उद्योगों के पर्यावरण पर पडऩे वाले प्रभाव का निर्धारण।
6- लोगों को पर्यावरण, पर्यावरण असंतुलन तथा पारिस्थितिकी संतुलन के प्रति जागरूक बनाना।
डा अरविंद डोगरा (वरिष्ठ फिजीशियन) का कहना है कि किसी भी उद्योग की मशीनों को चलाने के लिए ऊर्जा उत्पादन तथा कच्चे माल की निर्धारित क्रियाविधि के फलस्वरूप जो भी उत्सर्जन होता है, उसका गैसीय भाग चिमनियों से निकलता है।
इन चिमनियों से हानिकारक पदार्थ जब वायुमंडल में विसर्जित होते हैं तो प्रदूषण फैलता है। इन उत्पादन इकाइयों से प्रतिदिन उत्पन्न विषैली गैसें जैसे-कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड हाइड्रोकार्बन, नाइट्रोजन के विभिन्न ऑक्साइड, पार्टिकुलेट पदार्थ, लेड, एस्वैस्टास, पारा, कीटनाशक तथा अन्य अपशिष्ट पदार्थों के कण वायुमंडल को प्रदूषित कर रहे हैं।