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गधी के दूध से बनाया साबुन, धो रहीं ग्रामीणों की गरीबी; प्रिंस चार्ल्स कर चुके हैं सम्मानित

गाजियाबाद के मुख्य पशु चिकित्साधिकारी महेश कुमार ने बताया कि गधी का दूध कोशिकाओं को ठीक करता है। इसमें एंटी-एजिंग एंटी-आक्सिडेंट और रीजेनेरेटिंग कंपाउंड्स होते हैं। साथ ही यह विटामिन ए बी-1 बी-2 बी-6 डी और ई की शरीर में कमी दूर करने के लिए लाभदायक है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 15 Feb 2021 12:28 PM (IST)Updated: Mon, 15 Feb 2021 12:28 PM (IST)
गधी के दूध से बनाया साबुन, धो रहीं ग्रामीणों की गरीबी; प्रिंस चार्ल्स कर चुके हैं सम्मानित
रूरल इन्वेस्टर फेस्टिवल के दौरान पूजा कौल के स्टार्टअप की जानकारी लेते उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू।

हसीन शाह, गाजियाबाद। कुछ करने की प्रबल इच्छा होती है तो चुनौतियां खुद-ब-खुद किनारे होती चली जाती हैं। देखते ही देखते आप दूसरों को भी राह दिखाने के काबिल बन जाते हैं। ऐसा ही 25 वर्षीय पूजा कौल के साथ हुआ, जो आज अपने स्टार्टअप को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने के साथ ही ग्रामीणों को रोजगार भी दे रही हैं। ऐसे ग्रामीणों को जो कभी महीने में महज पांच-छह हजार रुपये कमाते थे, आज पूजा के सहयोग से उनकी मासिक आमदनी दोगुनी हो गई है।

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टाटा इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइंस से पोस्ट ग्रेजुएट पूजा कौल ग्रामीणों के लिए कुछ काम करना चाहती थीं। उन्होंने पहले गधी का दूध बेचने का माडल तैयार किया, लेकिन वह सफल नहीं हो सका। पूजा ने हार नहीं मानी और गधी के दूध से साबुन तैयार करने का स्टार्टअप शुरू किया। अब इनका यह उत्पाद दो साल में अंतरराष्ट्रीय फलक पर भी पहचान बना चुका है। साबुन के लिए गधी का दूध तीन हजार रुपये प्रति लीटर खरीदा जा रहा है। जैसे-जैसे मांग बढ़ रही है, दूध की खरीदारी भी बढ़ रही है।

पूजा के मुताबिक गाजियाबाद के डासना में गधी पालक काफी हैं तो वह वहीं से दूध लेती हैं। शुरुआत में महिलाओं ने दूध बेचने पर आपत्ति जताई, लेकिन जब कुछ ग्रामीणों को दूध बेचकर आमदनी होती दिखी तो फिर दूसरे भी इसके लिए तैयार हो गए। पहले सिर्फ दो से पांच लीटर की जरूरत होती थी, अब डासना के गधी पालकों से 16 से 20 लीटर दूध खरीदती हैं। 50 से 60 ग्रामीण गधी पर बोझा ढोने के साथ उनका दूध भी बेच रहे हैं। अलग-अलग व्यक्तियों से खरीदे जाने के कारण वे औसतन 15 हजार से अधिक कमा रहे हैं। प्रति माह तीन हजार से अधिक साबुन आर्गेनिको नाम से आनलाइन शापिंग वेबसाइट पर बिक रहे हैं, जहां एक साबुन की कीमत 499 रुपये है। यह साबुन त्वचा के लिए बेहद गुणकारी है। झाइयां हटाने और चमक बढ़ाने में भी कारगर होता है।

मिला सम्मान, बनी पहचान : दो साल पहले हुई शुरुआत आज मुंबई से लेकर कश्मीर तक ही नहीं, बल्कि आस्ट्रेलिया तक पहुंच रही है। बकौल पूजा, ब्रिटेन में प्रिंस चाल्र्स व प्रिंस हैरी ने स्टार्ट अप के लिए उन्हें पुरस्कार से सम्मानित भी किया। इसके अलावा 2020 में एशिया के सर्वश्रेष्ठ रचनात्मक व्यवसाय (अंडर-30) की फोर्ब्स सूची में शामिल होने के साथ ही पूजा कौल को वुमेन आंत्रप्रन्योर आफ द ईयर का सम्मान भी मिल चुका है। उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू समेत कई हस्तियां उनके स्टार्टअप की प्रशंसा कर चुकी हैं।

अच्छी हो रही आमदनी : गधी पालक वसीम और सलीम कहते हैं कि गधी का दूध बेचने से आमदनी बढ़ गई है। एक गधी सामान्यतया आधा लीटर दूध देती है, अब इनके खानपान पर ध्यान दे रहे हैं तो एक लीटर तक दूध दे रही है। पहले इनसे बोझा ढुलाई कराकर दिन में 300 रु. कमा लेते थे, अब दूध बेचने से भी फायदा हो रहा है।

आतंकियों की धमकी से छोड़ना पड़ा कश्मीर : ग्रेटर नोएडा निवासी पूजा कौल का परिवार मूल रूप से कश्मीर के श्रीनगर का रहने वाला है, आतंकियों के जुल्म और हत्याओं की धमकियों की वजह से 1990 में परिवार को कश्मीर छोड़ना पड़ा था।

गाजियाबाद के मुख्य पशु चिकित्साधिकारी महेश कुमार ने बताया कि गधी का दूध कोशिकाओं को ठीक करता है। इसमें एंटी-एजिंग, एंटी-आक्सिडेंट और रीजेनेरेटिंग कंपाउंड्स होते हैं। साथ ही यह विटामिन ए, बी-1, बी-2, बी-6, डी और ई की शरीर में कमी दूर करने के लिए लाभदायक है। अब तो त्वचा के लिए भी गधी का दूध उपयोगी साबित हो रहा है, इसलिए साबुन बनाने में भी इसका प्रयोग किया जा रहा है और यह बढ़ रहा है।

गधी के दूध से अलग-अलग आकार के तैयार साबुन ’ सौजन्य : स्वयं


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