कोरोना की जंग में मेडिकल के छात्र बने ढाल
शाहनवाज अली गाजियाबाद कोरोना संकट बढ़ने के साथ ही स्वास्थ्य विभाग के लिए चुनौतियां भी बढ
शाहनवाज अली, गाजियाबाद :
कोरोना संकट बढ़ने के साथ ही स्वास्थ्य विभाग के लिए चुनौतियां भी बढ़ी। स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी भी संक्रमण से अछूते नहीं रहे। स्थिति को संभालने के लिए एमबीबीएस और बीएएमएस के छात्रों के साथ ही पढ़ाई पूरी कर इंटर्नशिप के छात्रों से संक्रमितों के इलाज के लिए मदद ली गई।
कोविड वार्ड में संक्रमितों के बीच जहां जरा सी चूक से संक्रमण का खतरा था। वहीं, डबल शिफ्ट में मरीजों के बीच रहना और गंभीर मरीजों की आंखों के सामने मौत के बाद परिजनों का बिलखते हुए देखना। इसी संबंध में जिले के कुछ जूनियर चिकित्सकों और चिकित्सीय शिक्षा ग्रहण कर रहे छात्रों से बात की, जिन्होंने अपने अनुभव कुछ यूं बयां किए।
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कोरोना संक्रमितों के चेहरों पर उदासी और पीड़ा साफ झलकती है, लेकिन इन सबके बीच में सोच को सकारात्मक बनाने के साथ ही उनमें उर्जा का संचार करने के लिए इलाज के साथ ही सकारात्मक माहौल देने की पूरी कोशिश कर रही हूं। यह तो पता था कि इस पेशे में मरीजों की उखड़ती सांसों को वापस लाने के लिए जूझना होगा, लेकिन इतनी जल्दी इन हालात में मेरी डाक्टरी की शुरूआत होगी। यह कभी नहीं सोचा था।
- डॉ. शिवानी, एमबीबीएस
हमें यह मालूम था कि हमारी ड्यूटी कोविड वार्ड में लगेगी। मगर उसके लिए हमें कोई विशेष प्रशिक्षण या उपचार के लिए कोई खास दिशा-निर्देश नहीं दिए गए थे। कोविड को लेकर न तो पहले से कोई शिक्षा दी गई। क्योंकि यह दुनिया के लिए ही नई बीमारी है। जितनी जानकारी मिली उसी के साथ हम लोग मरीजों को ठीक करने की कोशिश में लगे हैं।
- डॉ. कुणाल, एमबीबीएस हाउस जॉब
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मेरे बहुत से दोस्तों ने इंटर्नशिप के शुरूआत में ही ऐसे मामलों को नजदीक से देखा है। मरीज अपनी आखिरी सांसे ले रहे थे। मेरे चिकित्सक दोस्तों के साथ ही वरिष्ठ चिकित्सक जिदगी बचाने की कोशिश में लगे रहे। हमने आयुर्वेद चिकित्सा की शिक्षा ली, लेकिन इस मुश्किल वक्त में सहारनपुर जिले में अपने कालेज में मरीजों के इलाज में वरिष्ठ चिकित्सकों के साथ हाथ बंटाया। हताशा और निराशा के दौर में जहां से हम लोगों ने अपने इस पाक पेशे की शुरूआत की। जिदगी बचाने कोशिश जारी रखेंगे।
- डॉ. हैदर हसन, बीएएमएस अंतिम वर्ष चिकित्सा शिक्षा के दौरान ही जान लिया था कि डाक्टर की जिदगी कोई फूलों की राह जैसी आसान नहीं होगी। लेकिन शुरूआत में ही हमें ऐसी बीमारी से जूझ रहे मरीजों का इलाज करना होगा, जिसके लिए पूरी दुनिया इलाज ढूंढ़ रही है, यह सोचा न था। सहारनपुर में अपने कालेज में ही वरिष्ठ चिकित्सकों के साथ संक्रमितों को ठीक करने की कोशिश में लगे रहे।
- डॉ. समरीन अंसारी, बीएएमएस अंतिम वर्ष
डॉक्टर और नर्स की बड़ी जरूरत जिले की आबादी के हिसाब से चिकित्सक बेहद कम हैं। आइएमए गाजियाबाद के मुताबिक कोविडकाल में चेस्ट फिजिशियन की सबसे अधिक जरूरत थी, जो सरकारी और प्राइवेट को मिलाकर सिर्फ 10 से 12 हैं। गेस्ट्रोलाजिस्ट चार से पांच और कार्डियोलाजिस्ट आठ से 10 हैं। जिले की आबादी करीब 50 लाख, जहां काफी संख्या में चिकित्सकों की जरूरत है। अभी अधिकांश लोग मेडिकल स्टोर्स और अप्रशिक्षितों से ही दवाई लेकर इलाज करा रहे हैं।
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कोरोना संक्रमणकाल की पहली और दूसरी लहर में एक हजार से अधिक चिकित्सक अपनी जान गंवा चुके हैं। खुद आइएमए ने इसकी रिपोर्ट जारी की है। कोविड मरीजों के इलाज के दौरान बहुत से चिकित्सकों ने विषम परिस्थितियों में खुद की परवाह किए बिना लोगों की जान बचाने के प्रयास किए। कोरोना संक्रमणकाल में जिले के के 10 चिकित्सकों की जान गई है।
- डॉ. आशीष अग्रवाल, अध्यक्ष इंडियन मेडिकल एसोसिएशन गाजियाबाद