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कभी करते थे कंठ तर, अब आचमन से भी लगता डर

अभिषेक सिंह गाजियाबाद मुझे 1947 का वह दौर याद आता है जब मैं पाकिस्तान से भारत आया था। तब मेरी उम्र 15 साल थी। इंटरमीडिएट का छात्र था। उस जमाने में हरनंदी नदी का पानी इतना साफ था कि लोग न केवल उसमें नहाते थे बल्कि पानी पीकर कंठ भी तर करते भी थे। तब हरनंदी नदी में न तो औद्योगिक इकाइयों का रसायनयुक्त पानी आता था न ही गंदा पानी बहाया जाता था।

By JagranEdited By: Published: Mon, 22 Nov 2021 07:02 PM (IST)Updated: Mon, 22 Nov 2021 07:02 PM (IST)
कभी करते थे कंठ तर, अब आचमन से भी लगता डर
कभी करते थे कंठ तर, अब आचमन से भी लगता डर

अभिषेक सिंह, गाजियाबाद: मुझे 1947 का वह दौर याद आता है, जब मैं पाकिस्तान से भारत आया था। तब मेरी उम्र 15 साल थी। इंटरमीडिएट का छात्र था। उस जमाने में हरनंदी नदी का पानी इतना साफ था कि लोग न केवल उसमें नहाते थे, बल्कि पानी पीकर कंठ भी तर करते भी थे। तब हरनंदी नदी में न तो औद्योगिक इकाइयों का रसायनयुक्त पानी आता था, न ही गंदा पानी बहाया जाता था। वक्त बीतता गया। हरनंदी अपनी पहचान खोती गई। अब कंठ तर करना तो दूर, आचमन से भी डर लगता है। अब स्थिति यह है कि त्योहार पर नेता हरनंदी नदी किनारे पहुंचकर बयानबाजी करते हैं। फोटो खिचवाते हैं। चंद घंटे बाद ही नदी के जीर्णोद्धार को लेकर किए वादे भूल जाते हैं। यह कहना है अशोक नगर में रहने वाले वरिष्ठ स्तंभकार कुलदीप तलवार का।

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दैनिक जागरण ने हरनंदी नदी बचाओ अभियान की शुरुआत की है। इस अभियान के दौरान पहला प्रयास हरनंदी नदी के जीर्णोद्धार के लिए जिम्मेदार अधिकारियों को गहरी नींद से जगाना है, ताकि पतित पावनी गंगा और यमुना की तरह ही हरनंदी नदी के जीर्णोद्धार के लिए एक ठोस योजना बन सके। यह नदी सहारनपुर के निकट शिवालिक पर्वत श्रृंखला से निकलकर सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, गाजियाबाद होते हुए गौतमबुद्धनगर तक जाती है। पांचों जिलों में ही हरनंदी नदी का पानी दूषित और आकार संकुचित हो चुका है। आज जरूरी है कि नदी के जीर्णोद्धार के लिए सभी जिलों के जिम्मेदार अधिकारी, पर्यावरणविद और जिले के लोग नदी के जीर्णोद्धार को आगे आएं, ताकि नदी फिर से जी उठे और लोगों की प्यास बुझाने के साथ ही लगातार गिरते जलस्तर को बढ़ाए।

वर्जन.. हरनंदी नदी का जीर्णोद्धार तभी होगा, जब उद्यमी नदी में रसायनयुक्त पानी को प्रवाहित करने से रोकेंगे। नदी में प्रवाहित होने से पहले पानी को प्लांट में शोधित करना जरूरी है। यह तभी संभव है, जब प्रशासन सख्ती करे।

-सत्येंद्र सिंह, पर्यावरणविद।

हरनंदी नदी के जीर्णोद्धार में सरकार और प्रशासन रूचि नहीं ले रहा। नदी के जीर्णोद्धार को एनजीटी का भी आदेश है, पर उसका पालन नहीं हो रहा। प्रदूषण विभाग, सिचाई विभाग, प्रशासन, नगर निकायों के साथ पुलिस की जिम्मेदारी भी तय है, फिर भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

-आकाश वशिष्ठ, पर्यावरणविद।

हरनंदी नदी का जीर्णोद्धार होना ही चाहिए। इसके लिए जिला प्रशासन से मांग की जाएगी। हनुमान मंगलमय परिवार और विश्व ब्राह्मण संघ की ओर से नदी के जीर्णोद्धार के लिए हरसंभव कदम उठाया जाएगा।

-बीके शर्मा, प्रवक्ता, विश्व ब्राह्मण संघ।

हरनंदी नदी का जीर्णोद्धार मंच पर भाषण देने से नहीं होगा। इसके लिए राजनेताओं को चितन करना होगा। हरनंदी के ही आसपास से गंगनहर भी गुजर रही है। सरकार नदियों को जोड़ने की बात करती है। यदि हरनंदी में गंगनहर का पानी छोड़ा जाए और नदी के किनारे सफाई व्यवस्था ठीक हो, तो ही इसका जीर्णोद्धार होगा।

-नारायण गिरि, महंत, दूधेश्वरनाथ मंदिर।


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