जल दूषित करने से कभी खुश नहीं होते भगवान
दीपा शर्मा गाजियाबाद हरनंदी पहले ही इतनी प्रदूषित हो चुकी है उसको स्वच्छ बनाने के लिए प
दीपा शर्मा, गाजियाबाद : हरनंदी पहले ही इतनी प्रदूषित हो चुकी है उसको स्वच्छ बनाने के लिए प्रयास के बजाय उसमें बची हुई पूजन सामग्री, देवताओं पर चढ़ाए फूल, फल, पत्ती, खंडित तस्वीरों, मूर्तियों आदि को नदी में विसर्जित किया जा रहा है। दूसरी ओर मुरादनगर गंगनहर के श्री दूधेश्वरनाथ घाट छोटा महादेव पर भी इस तरह की सामग्री डाली जा रही है। कई श्रद्धालु नदी को दूषित न करने के उद्देश्य सामग्री हरनंदी में विसर्जित नहीं करते हैं कुछ ही दूरी पर किनारे पर रख देते हैं, लेकिन धीरे-धीरे उड़कर या बारिश के पानी के साथ बहकर सारी गंदगी नदी में ही आ जाती है। जो किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता है। इन सभी बातों का अर्थ किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं जागरूक करना है और अपना कर्तव्य ध्यान दिलाना है।
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ईको फ्रेंडली मूर्ति की स्थापित परमार्थ सेवा समिति के चेयरमैन वीके अग्रवाल ने बताया कि उन्होंने भगवान गणेश की मिट्टी की मूर्ति बनाई है। उनका कहना है कि इस तरह की मूर्ति को चाहे जल स्रोत में विसर्जित करें या घर में ही गमले में, पर्यावरण को कोई हानि नहीं होगी। उन्होंने मूर्ति को गमले में रखकर एक आम का पौधा लगाया है। जो पीओपी की मूर्तियां है जिन्हें नदियों में डालने से केमिकल की वजह से जल दूषित होता है और इससे जलीय जीव मर भी जाते हैं। पूजा के बाद होने वाले फूल पत्तों को भी नदीं में नहीं डालेंगे उसे पेड़ पौधों की जड़ में डाल देंगे इससे वह खाद बनकर पौधों को मजबूती देंगे।
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पूजन सामग्री को जल स्रोतों में डालना उचित नहीं है। इस सामग्री को खाद बनाकर पेड़ पौधों में डाला जा सकता है। इसके अलावा ईको फ्रेंडली गणपति स्थापित कर सकते हैं। मंदिर की गणपति मूर्ति को जल में विसर्जित नहीं करते बल्कि श्री दूधेश्वरनाथ घाट पर स्थापित कर देते हैं। जल स्रोतों को दूषित करना हमारी संस्कृति नहीं है। ऐसा करते हैं तो पुण्य के बजाय पाप के भागीदारी होंगे।
- नारायण गिरि महाराज, महंत, श्री दूधेश्वरनाथ मंदिर