अधिकारियों के बदलते ही विलुप्त हो गया 'नई मंजिल' अभियान
अजय सक्सेना लोनी क्षेत्र के विकास उन्नति लोगों की सुरक्षा में प्रशासनिक अधिकारियों और पुलि
अजय सक्सेना, लोनी : क्षेत्र के विकास, उन्नति, लोगों की सुरक्षा में प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस का बड़ा योगदान होता है। लेकिन अधिकारियों के बदलने से 'नई मंजिल' जैसा अभियान विलुप्त होता दिख रहा है। अभियान के विलुप्त होने से सड़क किनारे मिलने वाले शवों की संख्या बढ़ गई है। लोगों का माना है कि 'नई मंजिल' जैसे अभियान से बेसहारा लोगों की जान बचाई जा सकती है।
अक्सर बस स्टेंड, रेलवे स्टेशन आदि स्थानों पर बेसहारा लोग घूमते देखे जाते हैं। तपती गर्मी में देखभाल न होने से उनकी जान चली जाती है। ऐसे लोगों की देखभाल, सुरक्षा के लिए मई 2018 में तत्कालीन उपजिलाधिकारी अमित पाल शर्मा ने नई मंजिल अभियान की शुरूआत की थी। अभियान में पुलिसकर्मी यहां वहां घूमने वाले लोगों को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाकर उनका चेकअप कराते थे। चेकअप कराने के बाद उन्हें उपजिलाधिकारी के सम्मुख पेश किया करते थे। उपजिलाधिकारी उन्हें जिला अस्पताल भेजते थे। जहां मानसिक संतुलन की जांच होती थी। जांच में मानसिक संतुलन खराब पाए जाने पर शहादरा, आगरा और बरेली भेजा जाता था। मानसिक संतुलन ठीक होने पर उन्हें मेरठ स्थित आश्रम में भेजा जाता था। अभियान के तहत एक सप्ताह के भीतर चार पुरुष व दो महिलाओं को लोनी से जिला अस्पताल और वहां से आगे रवाना किया गया था। उपजिलाधिकारी खालिद अंजुम का कहना है कि जल्द क्षेत्र के बेसहारा लोगों को अभियान के तहत सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया जाएगा। पांच दिन में बरामद हुए दो शव: लोगों की माने तो 40 डिग्री तापमान में बेसहारा युवक अक्सर इधर-उधर घूमते देखे जाते हैं। पहले अधिकारी इनकी ओर ध्यान नहीं देते मौत हो जाने पर पुलिस शव कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम को भेज देती है। आंकड़ों के मुताबिक पांच दिन के भीतर पुश्ता पुलिस चौकी के पास, ट्रॉनिका सिटी औद्योगिक क्षेत्र स्थित गेट नंबर दो के पास सड़क किनारे शव बरामद हुए हैं। माना जा रहा है कि बीमारी और गर्मी से उनकी मौत हुई है। ऐसे में स्थानीय संस्थाओं का कहना है कि यदि नई मंजिल अभियान के तहत इन्हें आसरा मिल गया होता तो उनकी जान नहीं जाती।