पराली को लेकर किसानों में आई जागरूकता: अरविद यादव
जागरण संवाददातामोदीनगरपराली जलाने से पर्यावरण को होने वाले नुकसान को लेकर किसानों में
जागरण संवाददाता,मोदीनगर:
पराली जलाने से पर्यावरण को होने वाले नुकसान को लेकर किसानों में इस बार खासी जागरूकता देखने को मिल रही है। पिछले साल की अपेक्षा पराली जलाने के मामलों में इस बार काफी हद तक कमी देखने को मिल रही है। कृषि विज्ञान केंद्र और कृषि विभाग के साझा प्रयास से आयोजित होने वाले कार्यक्रमों के चलते यह सुखद परिणाम सामने आया है। आने वाले दिनों में और अधिक बदलाव देखने को मिलेगा।
कृषि विज्ञान केंद्र मुरादनगर के प्रभारी एवं वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. अरविद यादव ने बताया कि पर्यावरण की सेहत लगातार बिगड़ रही है। इसको लेकर कृषि विज्ञान केंद्र और कृषि विभाग द्वारा गांवों में कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। किसानों को समझाया जा रहा है कि पराली जलाने से न केवल प्रदूषण फैलता है, बल्कि जमीन की उपजाऊ क्षमता भी काफी कम हो जाती है। किसानों को यह बात समझ आई और वे पराली की खाद बनाकर उसको नष्ट कर रहे हैं। धान की पराली तो इस बार जिले में न के बराबर ही जलाई गई है। यहां के किसान धान की पराली का उपयोग पशुओं को खिलाने व पशुओं को सर्दी से बचाने में करते हैं।
अरविद यादव ने बताया कि गन्ने की पराली का भी किसान सदुपयोग कर रहे हैं। काफी हद तक पराली किसानों ने जलाई नहीं है। जिस प्रकार से किसानों का उनको सहयोग मिल रहा है, उससे तय है कि आने वाले कुछ ही दिनों में पराली जलाने के मामले पूरी तरह खत्म हो जाएंगे। उन्होंने बताया कि किसान अब पहले से जागरूक हो चुका है। उसे अपनी आमदनी बढ़ाने के साथ पर्यावरण की भी चिता है। अरविद यादव ने बताया कि गाजियाबाद ही नहीं, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के तमाम जिलों के किसान इसको लेकर काफी जागरूक है। कम संख्या में किसान ऐसे हैं जो धान की पराली को जलाकर नष्ट करते हैं।