भुलक्कड़ मरीज बने टीबी अस्पताल का सिरदर्द
निर्धारित छह माह तक टीबी की दवा का सेवन न करने वाले क्षय रोगी इस बीमारी के बाद भी अस्पताल में ही पड़े हुए हैं। इन्हें अपने घर का पता एवं नाम तक नहीं मालूम हैं।
जासं, फीरोजाबाद: निर्धारित छह माह तक टीबी की दवा का सेवन न करने वाले क्षय रोगी इस बीमारी की बैक्टीरिया को मजबूत बनाकर स्वयं तो तकलीफ बढ़ा ही रहे हैं, अस्पताल को भी मुसीबत में डाल रहे हैं। ऐसे रोगी एमडीआर (मल्टी ड्रग रजिस्टेंट) और एक्सडीआर (एक्सटेंसिव ड्रग रजिस्टेंट) बन रहे हैं।
रोगियों की सहूलियत को सभी सरकारी अस्पतालों व 750 स्थानों पर डाट्स केंद्र खुले हुए हैं। यहां टीबी की दवाएं उपलब्ध हैं। रोगियों को एक दिन बाद यहां आकर दवा खानी पड़ती हैं। इसके बाद भी करीब दो फीसद रोगी समय पर दवा खाना भूल जाते हैं। कोर्स (कम से कम छह माह दवा खाने) पूरा करने से पहले दवा छोड़ देते हैं। इससे बैक्टीरिया की दवाओं के प्रति प्रतिरोधक शक्ति बढ़ जाती है। जब वे दुबारा दवा शुरू करते हैं तो सामान्य दवाएं कारगर साबित नहीं होतीं। - क्या है एमडीआर और एक्सडीआर:: जब टीबी की एक-दो दवाएं कारगर साबित नहीं होतीं, तब एमडीआर की स्थिति बन जाती है। ऐसे रोगियों को नए सिरे से 14 माह तक दवा खानी पड़ती है। अनेक इन दवाओं का सेवन भी छोड़ देते हैं। तब ये मरीज एक्सडीआर की श्रेणी में आ जाते हैं। एक्सडीआर रोगियों को तीन से पांच साल तक दवाएं खानी पड़ती हैं। एक्सडीआर जांच की सुविधा जालमा में: एमडीआर रोगियों की जांच की सुविधा जनपद में है, एक्सडीआर की जांच आगरा के जालमा संस्थान में होती है। बलगम को वहां भेजा जाता है।
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टीबी के सामान्य रोगी-4091
एमडीआर रोगी- 270
एक्सडीआर रोगी- 19
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वर्जन-
रोगियों को एक भी दिन दवा का सेवन नहीं छोड़ना चाहिए। दोबारा दवा शुरू करने से ये बैक्टीरिया पर बेअसर साबित होते हैं और रोगियों की मुसीबत बढ़ जाती है।
आरएस अत्येंद्र, जिला टीबी रोग नियंत्रण अधिकारी