रात भर आंचल बदलता रहा बेजान जिस्म, दिन में तड़पती रही ममता
फीरोजाबाद, डॉ. राहुल सिंघई। शक तो तभी हो गया था जब कोख से जन्मे शिशु की किलकारी नहीं सुनी। नौ माह तक पेट में पालने वाली मां कभी पलंग टटोलती तो कभी सवाल करती। मगर, हर जवाब उसके शक को बढ़ाता रहा। प्रसूता की हालत न बिगड़े, इसके लिए परिजन मृत शिशु को दूर ले गए थे। ये बेजान जिस्म रात भर आंचल बदलता रहा। सुबह जानकारी होने पर मां दहाड़ मारने लगी।
डा. राहुल सिंघई, फीरोजाबाद: शक तो तभी हो गया था जब कोख से जन्मे शिशु की किलकारी नहीं सुनी। नौ माह तक पेट में पालने वाली मां कभी पलंग टटोलती तो कभी सवाल करती। मगर, हर जवाब उसके शक को बढ़ाता रहा। प्रसूता की हालत न बिगड़े, इसके लिए परिजन मृत शिशु को दूर ले गए थे। ये बेजान जिस्म रात भर आंचल बदलता रहा। सुबह जानकारी होने पर मां दहाड़ मारने लगी।
पचोखरा के गांव श्रीनगर निवासी मजदूर मुकेश ने अपनी पत्नी आशा को स्वास्थ्य विभाग की 'आशा' के भरोसे टूंडला के सीएचसी में भर्ती कराया था। रातभर भर्ती रहने के बाद सीएचसी से उसे लालच में उसे एटा रोड स्थित झोलाछाप के अस्पताल में भेज दिया गया। यहां रातभर इलाज से गर्भवती की हालत बिगड़ गई। यहां से परिजन उसे सीएचसी लाए। यहां से उन्हें जिला अस्पताल भेज दिया गया। गुरुवार शाम को आशा ने मृत शिशु को जन्म दिया।
आशा की बिगड़ी हालत उसके लिए खतरा बनती जा रही थी, इसलिए परिजन शव को लेकर अस्पताल के बाहर चले गए। दादी कैलादेवी उसे सीने से लगाकर कभी फफक कर रोती तो कभी किस्मत को कोसतीं। आशा की हालत में सुधार और उसके मायके वालों के आने का इंतजार होता रहा। रात में दादी मरे हुए बच्चे को लिए बैठी तो ताई ने भी उसे सहारा दिया। बड़े भाई वीरी ¨सह की पत्नी भी साथ थी। सास और बहू दोनों एक दूसरे को ढांढस बंधाती और लाश को सीने से चिपका लेती। सुबह आशा को जब बच्चे की मौत का पता चला तो वह बिलख पड़ी। दोपहर बाद मायके वाले पहुंचे। इसके बाद शव को मिट्टी में दबा दिया गया।