फाइलों में पालना, मंदिर परिसर में नवजात
बड़े अस्पतालों में भी नहीं है पालना घर कई निष्ठुर माताएं नवजात को छोड़ देती हैं।
जागरण संवाददाता, फीरोजाबाद:
मामला एक: टूंडला थाना क्षेत्र के गांव मुहम्मदाबाद स्थित शिव मंदिर परिसर में रविवार सुबह नवजात कन्या रूई में लिपटी मिली थी। वह खुशकिस्मत थी कि उसे एक दंपती ने देख लिया और वह सुरक्षित बच गई।
मामला दो: स्वशासी राजकीय मेडिकल कालेज अस्पताल परिसर में कुछ माह पहले जुड़वा नवजात प्लास्टिक की डस्टबीन में पड़े थे, जब तक उनके बारे में पता चला, तब तक मौत हो चुकी थी।
नवजात शिशुओं की ऐसी बेकदरी रोकने के लिए शासन ने सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर पालना घर बनवाने के आदेश डेढ़ साल पहले स्वास्थ्य विभाग को दिए थे, लेकिन आदेश सरकारी फाइलों में सिमट कर रह गया है। कभी लोकलाज तो कभी अन्य कारणों से कई माताएं नवजात बच्चों को इधर-उधर छोड़ देती हैं। पालना घर बनवाने संबंधी आदेश के पीछे शासन की मंशा यह थी कि यदि कोई मां किसी कारण अपने नवजात को पालने में असमर्थ है तो वह उसे पालना में रख दें। स्वास्थ्य विभाग इन्हें बाल कल्याण समिति के समक्ष पेश कर राजकीय शिशु सदन आगरा भिजवाने की पहल करेगा। इस तरह इनकी बेकदरी होने से बच जाएगी और इनका पालन पोषण सरकार के जिम्मे रहेगा, लेकिन पालना घर न तो फीरोजाबाद स्थित स्वशासी राजकीय मेडिकल कालेज अस्पताल परिसर में है न ही टूंडला सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर। जिले के दो बड़े अस्पतालों में जब पालना घर नहीं है तो अन्य सरकारी अस्पतालों की बात बेमानी है। - पहले सरकारी महिला अस्पताल में था पालना घर:
पहले सरकारी सौ शैय्या महिला अस्पताल में पालना घर बना था। लेकिन कोरोना काल में इस अस्पताल को कोविड हास्पिटल बना दिया गया और महिला अस्पताल को राजकीय मेडिकल कालेज अस्पताल परिसर में शिफ्ट कर दिया गया। यहां जगह की कमी की वजह से पालना घर नहीं है। 'सरकारी महिला अस्पतालों में पालना घर की व्यवस्था होती है। इस संबंध में अस्पतालों से जानकारी मांगी जाएगी। इसके बाद पालना घर की व्यवस्था की जाएगी।'
डा.नीता कुलश्रेष्ठ, सीएमओ