बंदिश के बीच दौड़ रहे 3843 अनफिट वाहन
हादसे के बाद दबकर रह जाती है अनफिट वाहनों पर कार्रवाई कोरोना काल में फिटनेस की जांच कराने पहुंचे सिर्फ 2944 वाहन।
जागरण संवाददाता, फीरोजाबाद: जिले में हजारों अनफिट वाहन दौड़ रहे हैं। ये वाहन हादसों का कारण बन रहे हैं। हादसे के बाद भी ऐसे वाहन पर कार्रवाई नहीं हो पाती। सारा खेल विभाग से मिलीभगत का है। कोरोना काल में छूट का फायदा उठाकर फिटनेस चेक कराए बिना वाहन सामान और सवारियों की ढुलाई कर रहे हैं। इनमें ट्रक, बसें और टैक्सियां शामिल हैं।
एक्सप्रेसवे से लेकर ग्रामीण मार्ग तक सुरक्षित रहें इसके लिए वाहनों का फिट होना भी जरूरी है। केवल ब्रेक ठीक होने से हादसों को नहीं रोका जा सकता। वाहनों में रिफ्लेक्टेड टेप, फाग लाइट, हेडलाइट, बैक लाइट, पार्किंग लाइट, हार्न, शाकर और टायर की स्थिति भी ठीक होना चाहिए। स्पीड गवर्नर तो बेहद जरूरी है। मगर, अधिकांश वाहनों में इसकी अनदेखी होती है।
एआरटीओ आंकड़ों के अनुसार पिछले वित्तीय वर्ष में 10,271 वाहनों के फिटनेस प्रमाण पत्र जारी किए गए थे। वित्तीय वर्ष एक अप्रैल से 24 नवंबर तक मात्र 2944 वाहनों की ही फिटनेस जारी हुई। 3843 वाहनों की फिटनेस खत्म हो चुकी है, लेकिन वाहन चालक फिटनेस कराने नहीं आ रहे हैं।
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-ये हैं नियम..
- जिस वाहन में सात यात्री सीटें हैं, उनकी हर दो साल में फिटनेस जांची जाएगी।
- सभी मालवाहक और व्यवसायिक वाहनों की फिटनेस अनिवार्य है।
- बगैर फिटनेस वाले वाहनों पर कम से कम पांच और अधिकतम दस हजार के जुर्माने का प्रावधान है।
- कृषि और दोपहिया वाहनों की फिटनेस जांच की कोई व्यवस्था नहीं होती।
-ये है व्यवस्था: एआरटीओ कार्यालय में फिटनेस जांच मानवीय रूप से होती हैं। यहां कोई मशीन नहीं है। फिटनेस ट्रैक पर गाड़ियों को खड़ा कर उसकी यांत्रिकी दशा चेक की जाती है। इसमें बाडी, एक्सल जंपिग, इंडीकेटर, इमरजेंसी गेट पर विशेष ध्यान दिया जाता है। स्पीड गवर्नर की आनलाइन जांच के लिए दो कर्मचारी अलग से रहते हैं। वहीं रिफलेक्टेड टेप लगाने के लिए थ्री-एम और रेट्रो रिफक्लेक्टर टेप लगवाने की भी व्यवस्था है। -ट्रैक्टरों पर नहीं कसा गया शिकंजा:
ट्रैक्टर कृषि कार्य के लिए हैं। इसके साथ लगाई जाने वाली ट्राली का परिवहन विभाग में वाणिज्यिक और कृषि के लिए पंजीकरण कराया जाना अनिवार्य है। जिले में महज दो दर्जन ट्रालियों का पंजीकरण ही कराया गया है। ट्रैक्टर के लिए भी लाइसेंस की अनिवार्यता है। -फिटनेस में खेल: दो बार फिटनेस में ओके मगर नहीं था इमरजेंसी गेट: बीते 15 अगस्त को लखनऊ एक्सप्रेसवे में राजस्थान की स्लीपर कोच बस में आग लगी थी। एक यात्री जिदा जल गया था। पड़ताल में सामने आया कि 2016 में खरीदी गई इस बस का फिटनेस प्रमाण पत्र इस साल 25 जून को जारी किया गया था। इससे पहले भी दो बार फिटनेस प्रमाणपत्र दिए गए थे। मगर, बस में इमरजेंसी गेट ही नहीं था। नियम है कि बस में बिना इमरजेंसी गेट के फिटनेस जारी ही नहीं जा सकती। -फिटनेस में ट्रांसपोर्टर का होता है शोषण:
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फीरोजाबाद ट्रांसपोर्ट एसो. के महामंत्री किशन यादव कहते हैं कि फिटनेस को लेकर परेशानियां बहुत हैं। परिवहन विभाग में दलालों का जाल बिछा हैं। पांच हजार रुपये दिए जाते हैं और रसीद एक हजार रुपये की मिलती है। परिवहन विभाग सख्ती करे, साथ में दलाली बंद हो, ताकि वाहन चालक खुद ब खुद फिटनेस कराने के लिए आगे आएं। 'कोरोना संक्रमण के कारण इस साल एक फरवरी के बाद जितने भी वाहनों की फिटनेस खत्म हुई है, उन सभी की अवधि 31 दिसंबर तक बढ़ा दी है। इन दिनों प्रतिदिन 20-25 वाहन ही फिटनेस के लिए आ रहे हैं। फिटनेस के वाहनों की संख्या पंजीकरण के अनुसार घटती बढ़ती रहती है। एक जनवरी से अभियान चलाया जाएगा।' -पीके सिंह, एआरटीओ फीरोजाबाद
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