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घूंट-घूंट, निवाले-निवाले से ताकत जुटानी है और चलते जाना है..

यूं ही घूंट-घूंट निवाला-निवाला ताकत जुटानी है और चलते जाना है.-फोटो-67

By JagranEdited By: Published: Fri, 15 May 2020 11:02 PM (IST)Updated: Fri, 15 May 2020 11:02 PM (IST)
घूंट-घूंट, निवाले-निवाले से ताकत जुटानी है और चलते जाना है..
घूंट-घूंट, निवाले-निवाले से ताकत जुटानी है और चलते जाना है..

संवाद सहयोगी, फीरोजाबाद: दिल्ली से प्रतापपुर जा रहे ननकेदेव को साइकिल से सफर तय करते हुए 24 घंटे बीत चुके थे। शुक्रवार दोपहर 12 बजे पैर साइकिल के पैडल दबाने में असमर्थ हुए तो उसने बाइपास किनारे साइकिल खड़ी कर दी। पेड़ की छांव में बैठ गया। लू के थपेड़ों से पसीना सूखा तो थैला से बोतल निकाली और गले को तर करने के बाद चार पूड़ी और सब्जी खाकर पेट भरा। जब उससे पूछा तो बोला अपने देश पहुंचने के लिए यूं ही घूंट-घूंट और निवाला-निवाला से ताकत जुटानी है। यह हाल अकेले ननकेदेव का नहीं, बल्कि सैकड़ों प्रवासियों का है, जो पैदल ही सफर तय कर रहे हैं।

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कोरोना से बचाव के लिए जब लॉकडाउन में व्यवस्थाएं चरमराई तो गरीब, मजदूरों के लिए पल-पल जिदगी की जंग शुरू हो गई। रोजगार गया तो परदेश में दुश्वारियां बढ़ने लगीं। खुद और परिवार को बचाने के लिए जंग पैदल शुरू हुई तो हर तरफ मजदूर ही मजदूर नजर आने लगे। एक तरफ सरकार बस और ट्रेन चला रही है, वहीं हजारों मजदूर पैदल चल रहे हैं। शुक्रवार को जागरण टीम ने सुहागनगरी में सड़क पर मजदूरों के हाल देखे तो हर तरफ बेबसी ही नजर आ रही थी।

शहर के बाहर राजा के ताल से शुरू होने वाले बाइपास पर कई परिवार हाथों में गठरी, पानी की बोतल और कंधों पर अपने बच्चों को बिठाकर तपती धूप में सफर करते दिखाई दिए, तो कई थकने के बाद पेड़ों की छांव में आराम करते। इटावा निवासी कमलेश ने बताया कि दो दिन पूर्व दिल्ली से चले थे। रास्ते में ट्रक मिल गया तो सफर जल्दी तय हो गया। इसके बाद फिर से चल पड़े। दिन में तेज धूप के कारण चला नहीं जाता। इसलिए सुबह, शाम और रात को ही सफर करते हैं। जगह-जगह लोगों द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले खाने से ही पेट भर लेते हैं। बिहार निवासी संदीप, मोहर सिंह, बंटू, संतोष, रामहरी आदि लोग पेड़ की छांव में खाना खा रहे थे।

भूसे की तरह भरे जा रहे थे मजदूर दोपहर दो बजे कोटला रोड पर सीएनजी डलवाने के लिए दिल्ली से आया लोडर टैम्पो रुका तो अचानक मजदूरों ने दौड़ लगा दी। कुछ बातचीत में किराया तय हुआ और एक के बाद एक मजदूर चढ़ने लगे। हालत ऐसी हुई कि लोडर में तीस से ज्यादा मजदूर चढ़ गए। एक ने बताया कि कानपुर तक के लिए व्यवस्था हो गई है। वहां से बिहार के लिए रास्ता देखेंगे। इसी बीच एक ट्राला निकला, जिसमें पांच दर्जन से अधिक मजदूर बैठे थे। तपती हवा के थपेड़े खाते मजदूरों को राहत थी कि कम से कम पैदल तो नहीं जाना पड़ेगा। कुछ मजदूरों ने हाथ देकर रोकने की कोशिश की, लेकिन ट्राला नहीं रुका। - हर बार पूछती थी बेटी मम्मी अब कितनी दूर है घर

फीरोजाबाद: दिल्ली में किराए पर ऑटो चलाने वाले इटावा के सुनील की दुश्वारियां लॉकडाउन वन में ही शुरू हो गईं। किसी तरह तरह डेढ़ महीना काटा और फिर पत्नी मधु और आठ पांच साल की बेटी सौम्या के साथ घर को चल पड़े। तपती धूप में सभी बहुत थक गए थे। बेटी सौम्या बार-बार पूछती थी कि मम्मी कितनी दूर और चलना है। सुनील उसे ढांढस बंधाता कि बिटिया चलती रहो जल्दी पहुंच जाएंगे। भंडारे में टूट रही थी भीड़

पैदल सफर कर रहे मजदूरों के लिए कुछ नरमदिल गांववालों ने खाने का इंतजाम किया है। उसायनी के पास एक ऐसा ही भंडारा सजा था, जहां मजदूरों की भीड़ टूट रही थी। शारीरिक दूरी का पालन कराने के लिए कोशिशें नाकाम हो रही थी और हर कोई जल्दी पैकेट पाना चाहता था। डर था कि कहीं खाना खत्म न हो जाए।


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