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तकनीक की बादशाहत से आलू की खेती के रोल माडल बने राहुल

जागरण संवाददाता फतेहपुर आलू की खेती फायदा का सौदा है यह सीखना है तो आप सदर तहसील क

By JagranEdited By: Published: Wed, 27 Oct 2021 08:30 PM (IST)Updated: Wed, 27 Oct 2021 08:30 PM (IST)
तकनीक की बादशाहत से आलू की खेती के रोल माडल बने राहुल
तकनीक की बादशाहत से आलू की खेती के रोल माडल बने राहुल

जागरण संवाददाता, फतेहपुर : आलू की खेती फायदा का सौदा है यह सीखना है तो आप सदर तहसील के औरई गांव पहुंच जाएं। ढाई सौ बीघा में आलू की खेती करने वाले प्रगतिशील किसान अत्याधुनिक संसाधनों के बूते बेहतर खेती कर रहे हैं। तकनीक की बादशाहत से आलू किग बने राहुल को बाजार के गिरते दामों की ज्यादा चिता नहीं रहती। वह कहते हैं कि दाम कुछ भी हो अपना आलू गुणवत्ता के दम पर दूने दाम पर बिकता है, इतना ही कुल उत्पादन का 20 फीसद आलू वह बीज में चार गुना दाम पर बेचते हैं। आलू किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या आलू का बाजार भाव रहता है। पैदावार अधिक होने से किसानों को आलू इतने सस्ते दामों में बेचना पड़ता है कि लागत भी नहीं निकल पाती। आलू की खेती में नुकसान न उठाना पड़े इसके भी कुछ टिप्स है, जिसे अपनाकर किसान अच्छा लाभ कमा सकते हैं।

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टिश्यू कल्चर लैब का बीज देता फायदा

केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान और अन्य निजी टिश्यू कल्चर लैब हिमाचल प्रदेश से बीज लाते है। आरएल (लाल), एक्स बी (जामुनी), टी- 8, प्रजाति का आलू इस साल लगाया। बताते हैं कि हर साल नई प्रजाति का आलू चार से पांच हेक्टेअर में लगा लेते है जो अगले साल के लिए नया बीज तैयार हो जाता है। इस समय बीज वाला आलू 24 सौ रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा है। जिले समेत उन्नाव, रायबरेली,कौशांबी, प्रतापगढ़, जौनपुर, अलीगढ, एटा के किसान बीज का आलू सीधे कोल्ड स्टोर से ले जा रहे हैं।

आलू के बाद मूंग, ढैंचा से मिलती ताकत

प्रगतिशील किसान ने बताया कि आलू वाले खेत में वह साल में केवल आलू व मूंग की फसल लेते हैं। अक्टूबर में आलू की बुआई हो जाती है तो फरवरी में तैयार हो जाती है। इसके बाद इसी खेत में मूंग की फसल करते हैं जो 75 दिन में तैयार हो जाती है। मिट्टी का ताकत देने के लिए ढैंचा की बुआई कर खेत में ही हरी खाद बना दी जाती है। संतुलित उर्वरक से आलू टिकाऊ और चमकदार होता है।

कम लागत, फायदा अधिक

आलू की खेती में लागत कम व फायदा अधिक करने के लिए नई तकनीक के साथ ज्यादातर काम मशीनों से किया जाता है। बुआई से लेकर खोदाई तक की अत्याधुनिक मशीनें हैं। इस समय कुफरी मोहन नाम की नई प्रजाति की आलू उत्पादन 200 से 225 क्विंटल प्रति एकड़ है जबकि अन्य प्रजाति का उत्पादन 150 से 200 क्विंटल तक है। मिनी स्प्रिंकलर सेट से सिचाई करने से पानी से साथ मजदूरी व बिजली की भारी बचत होती है।

औरेई आलू की खेती का माडल गांव है, यहां के प्रगतिशील किसान राहुल दुबे नई तकनीक अपना कर अच्छी पैदावार कर रहे है। कम लागत पर अधिक पैदावार व गुणवत्ता की सीख किसानों को इनसे लेनी चाहिए।

रामसिंह यादव, जिला उद्यान अधिकारी


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