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नाम के तालाब, लेकिन हकीकत बिन पानी सब सून

जागरण संवाददाता फतेहपुर तालाबों के साथ सबसे दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि बिन पानी सब सून

By JagranEdited By: Published: Mon, 07 Jun 2021 06:32 PM (IST)Updated: Mon, 07 Jun 2021 06:32 PM (IST)
नाम के तालाब, लेकिन हकीकत बिन पानी सब सून
नाम के तालाब, लेकिन हकीकत बिन पानी सब सून

जागरण संवाददाता, फतेहपुर : तालाबों के साथ सबसे दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि बिन पानी सब सून वाली कहावत के शिकार हो रहे हैं। बारिश का मौसम जाते ही तालाबों से पानी सूखने लगता है, जिससे ज्यादातर तालाब उपयोग से बाहर हो गए है। मनरेगा से हर साल तालाबों की खोदाई कराई जाती है, लेकिन खानापूर्ति के चलते इन तालाबों में पानी का ठहराव नहीं हो पाता है। जागरूक ग्रामीण नहर से तालाब में पानी भरकर जहां उसका उपयोग करते हैं वहीं तालाब में पानी रहने से भू-गर्भ जलस्तर में भी सुधार रहता है। नहर व नलकूप विभाग को हर साल सूखे तालाब भरने का लक्ष्य दिया जाता है, विभागों की लापरवाही यह रहती है कि हाहाकार मचने के बाद जून माह में तालाबों में पानी भरना शुरू करते है, कुछ तालाबों में पानी भरने के बाद बारिश का मौसम दस्तक दे जाता है। जल संरक्षण के क्षेत्र के काम करने वाले जलप्रहरी डा. अनुराग श्रीवास्तव, महेंद्र शुक्ल, राजेंद्र साहू, रामनारायण आचार्य का मानना है कि तालाब तभी उपयोगी साबित हो सकते हैं। जब सभी तालाबों को नहर व नलकूप की नालियों से जोड़ दिया जाए। तालाबों में साल भर पानी रहे तो उससे भू-गर्भ जलस्तर में सुधार आएगा। गांव में गर्मी के दिनों में पानी को लेकर मचने वाला हाहाकार से निजात मिलेगी। डार्क जोन में 895 बड़े तालाब

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जिले के डार्क जोन भिटौरा, मलवां, तेलियानी, हसवा, बहुआ, ऐरायां, धाता व अमौली में एक हेक्टेअर से अधिक क्षेत्रफल से वाले तालाबों की संख्या 895 है। डार्क जोन में जल संचयन की विशेष कार्ययोजना के बाद भी इन ब्लाकों के तालाबों को संवारा नहीं जा सका है। एक सैकड़ा से अधिक तालाबों का सुंदरीकरण कराया गया लेकिन बड़े क्षेत्रफल वाले इन तालाबों में पानी ही नहीं भरा जा सका। शहरी तालाब बदहाल

नगर पालिका और नगर पंचायतें अपनी धरोहर तालाबों को संरक्षित नहीं कर पा रहे हैं। शहर के ज्यादातर तालाबों में घरों का गंदा पानी एकत्रित हो रहा है। बस्ती के अंदर के तालाबों को कूड़े से पाटा जा रहा है और बस्ती के लोग उसपर कब्जा करते जा रहे है। पालिका प्रशासन अपनी इस धरोहर की अनदेखी इस कदर किए हुए हैं कि चार साल से आवाज उठाने के बाद भी तालाबों का सीमांकन नहीं हो पा रहा है। क्या कहते हैं ग्राणीण

शहर व कस्बों के तालाब मिटते जा रहे है, तालाबों के अतिक्रमण हटाने के लिए भले ही कागज में टास्क फोर्स गठित हो लेकिन सच है कि अतिक्रमणकारियों के हौसले बुलंद है।

शुभम सिंह नहर और नलकूपों की नालियों से तालाबों को जोड़ने की जरूरत है, पानी न रहने से तालाबों में अक्टूबर महीने से ही धूल उड़ने लगती है। तालाबों में पानी रहे यह व्यवस्था होनी चाहिए।

योगेश गुप्ता मनरेगा से तालाब खोदाई के नाम पर खानापूरी की जाती है, तालाबों की सिल्ट सही ढंग से साफ न होने से तालाबों में पानी का संचयन नहीं होता है।

ऋषि पांडेय जल संचयन के मुख्य स्त्रोत तालाबों का क्षेत्रफल बराबर कम होता जा रहा है। प्रशासन तालाबों को सुरक्षित रखने के लिए सालों से सीमांकन कराने की मांग पर कदम नहीं बढ़ा रहा है।

लखन विश्वकर्मा


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