परदेश छूटा तो पुस्तैनी काम बना जीने का सहारा
जागरण संवाददाता फतेहपुर कोरोना को देश से भगाने के लिए माध्यमिक शिक्षा में पहले से ही आरोग्य सेतु डाउनलोड करने के निर्देश जारी किए गए थे। अब शासन ने आयुष कवच डाउनलोड करने का निर्देश दिया गया है। शासन ने दो दिन के अंदर डाउनलोड किए जाने वाले आयुष कवच का ब्यौरा तलब किया है। डीआइओएस ने सभी प्रधानाचार्यों के माध्यम से अपील की है कि आरोग्य सेतु के साथ आयुष कवच डाउनलोड किया जाए।
संवाद सूत्र, गाजीपुर : कोविड-19 और लॉकडाउन ने परदेशियों को अपनी जन्मभूमि में लौटने को विवश कर दिया है। घर आने के बाद जीविकोपार्जन का संकट उनके सामने खड़ा हो गया है। ऐसे में कई जगहों पर रिश्तों की मजबूत डोर काम आ रही है तो तमाम जगह हुनर के बल पर कोरोना संकट से लड़ने का जज्बा काम आ रहा है। ऐसा ही एक प्रवासी श्रमिक सोनू हैं जो मुंबई में मजदूरी करके 15 से 16 हजार रुपये कमा लेता थे। परिस्थितियां बदली तो और काम छोड़ कर घर वापस आना पड़ा। जहां दूसरों के सामने हाथ फैलाने से अच्छा अपना काम करने का जज्बा उन्होंने दिखाया और प्रति माह 5 से 6 हजार रुपये कमाई करने के पुराने हुनर को अंगीकार कर लिया है।
कस्बे के समीपवर्ती गांव सुकेती के दर्जी परिवारों का सिलाई से पुराना नाता है। यहां पर राजेंद्र कुमार 20 साल से सिलाई का काम करते हैं। जबकि बड़े भाई राजकुमार कानपुर में परिवार के साथ रहकर शटरिग का काम करते हैं। वहीं तीसरे नंबर का छोटा भाई सोनू बीते आठ सालों से मुंबई में परिवार के साथ रहकर शटरिग का काम करता था। परदेश से लौटकर सिलाई करने वाले युवक सोनू का कहना है कि अचानक लॉकडाउन ने उसे आर्थिक तंगी में झोंक दिया। 19 साल के बेटे, और 12 तथा दो बेटियों और पत्नी के साथ खाली हाथ घर वापसी परेशानी बन गई। भाई राजेंद्र से मदद मांगी तो बैंक खाते में उन्होंने धन भेजा। इससे घर आया और भाई के द्वारा दिखाए गए रास्ते पर सिलाई का काम करने लगा। मुंबई में 15 से 16 हजार रुपये कमा लेता था। सिलाई के काम में 5 से 6 हजार रुपये कमा लेता है। इस कमाई से परिवार और गृहस्थी की गाड़ी का पहिया चल डगरा है।