उत्तरवाहिनी गंगा के आंचल को न होने दें मैला
फतेहपुर, सिटी रिपोर्टर : ंवसुंधरा की साक्षात देवी हैं मां गंगा, इनकी शरण में रहकर अपनी जीविका चलाने से लेकर प्राणी मोक्ष तक पाता है। राजा भगीरथ ने सोचा भी न होगा कि जिन मां गंगा के अवतरण के लिए उनकी कई पीढि़यां भेंट चढ़ गई उनकी इस धरा पर यह दुर्दशा भी हो सकती है। स्वामी विज्ञानानन्द ने मां उत्तरवाहिनी की रक्षा का संकल्प लेते हुए लोगों से जुड़ने की अपील की है।
वर्ष के तीज त्योहार हों या फिर कोई पर्व, गंगा किनारे भक्तों का हुजूम इस बात का सुबूत है कि मां गंगा हमारी सांस्कृतिक धरोहर ही नहीं अपितु श्रद्धा की देवी हैं। विज्ञानानन्द जी कहते हैं कि धार्मिक ग्रंथों के अनुसार गंगा जी का अवतरण भगीरथ के पूर्वजों के उद्धार के लिए हुआ था। गंगा को पृथ्वी तक लाने के लिए भगीरथ की तपस्या से पहले उनके पूर्वज राजा सगर, अंशुमान, दिलीप भी तप कर चुके थे लेकिन उनकी तपस्या सफल होने से पहले ही उन्हें शरीर त्याग करना पड़ा था। गंगा जी जब पृथ्वी पर उस स्थान पहुंचीं जहां भगीरथ के पूर्वज कपिल मुनि के श्राप से भष्म होकर भूमि पर पड़े थे। गंगा का स्पर्श होते ही भगीरथ के पूर्वजों को मोक्ष मिल गया। मां गंगा ने भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर उनसे वरदान मांगने को कहा इस पर उन्होंने गंगा से वर मांगा कि आपका स्पर्श पाने मात्र से व्यक्ति को मोक्ष मिल जाए। स्वामी जी कहते हैं तब से यह परंपरा चली आ रही, लेकिन लोगों ने इस परंपरा को गलत ढंग से अपना लिया। पुराणों में स्पष्ट है यदि शवदाह करना ही है तो तट से दूर या गांव में ही कर दें इसके बाद अवशेष भष्म को गंगा में प्रवाहित किया जा सकता है।
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मूर्तियों का न करें अपमान
फतेहपुर : देवी प्रतिमाओं की हम नौ दिन विधि विधान से पूजा-अर्चना करते हैं। इसके बाद उन्हें गंगा में जल विसर्जन कर देते हैं जो कि सही नहीं है। बिंदकी के सिद्धेश्वरधाम लालपुर के संत चैतन्य प्रताप ब्रह्मचारी कहते हैं कि जल में विसर्जन से मूर्तियों का अपमान होता है। देवी प्रतिमाओं का गंगा तट के किनारे भू-विसर्जन करना ही सही है।
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