गांवों में यूरिया का संकट, कृषि विभाग का इंकार
ग्रामीण क्षेत्रों में यूरिया का संकट गहराने लगा है। यह संकट अभी उतना नहीं है जिससे फुटकर विक्रेताओं की दुकान पर लाइन दिखे। अगर जल्द यूरिया की उपलब्धता न हुई तो आने वाले दिनों में स्थिति बिगड़ने लगेगी.
अयोध्या: ग्रामीण क्षेत्रों में यूरिया का संकट गहराने लगा है। यह संकट अभी उतना नहीं है जिससे फुटकर विक्रेताओं की दुकान पर लाइन दिखे। अगर जल्द यूरिया की उपलब्धता न हुई तो आने वाले दिनों में स्थिति बिगड़ने लगेगी। किसानों को धान के साथ गन्ना में भी यूरिया की जरूरत है। निजी दुकानों व समितियों दोनों पर जरूरत के मुताबिक यूरिया उसे नहीं मिल रही है।
वैसे कृषि विभाग के आंकड़े यूरिया के संकट की तस्दीक नहीं करते। इसी आधार पर वह किल्लत से इंकार करता है। उसके अनुसार खरीफ सीजन में 46 हजार मीट्रिक टन यूरिया के सापेक्ष करीब 28 हजार मीट्रिक टन उपलब्ध है जो 50 फीसद से अधिक है। अभी खरीफ के सीजन में दो महीने से ज्यादा का समय है। ऐसे में किल्लत की बात बेमानी है। कमोबेश ऐसी स्थिति सहकारी समितियों की भी है। पीसीएफ के गोदामों में उपलब्धता के बावजूद यूरिया की समितियों पर आपूर्ति में दिक्कत है। सहायक निबंधक सहकारिता वकील वर्मा ने बताया कि ट्रांसपोर्टर ने ट्रक बढ़ा दिया है। प्रति दिन करीब चार हजार बोरी यूरिया की आपूर्ति समितियों पर होने लगी है। इससे पहले ढाई व तीन हजार बोरी की रही।
पर कहीं न कहीं खेल जरूर है। चाहे यह थोक व्यापारियों की वजह से हो या अन्य कोई। सच यह है कि थोक विक्रेता किसानों को सिर्फ यूरिया देने को राजी नहीं। उसके साथ जिक व जैविक भी जबरिया देते हैं। न लेने पर वापस कर देते हैं। फुटकर विक्रेता यूरिया की किल्लत की यही वजह बताते हैं। बिना जिक व जैविक के वे यूरिया नहीं देते। फुटकर विक्रेताओं का कहना है कि किसान यूरिया लेने आता है, न कि उसके साथ जिक व जैविक। फुटकर विक्रेताओं के अनुसार थोक डीलरों की मनमानी से यूरिया किल्लत की यह स्थिति बनी है। अगर वह सिर्फ यूरिया देने लगे तो किल्लत दूर हो जाएगी। किसान संदीप मिश्र के अनुसार शक्तिमान यूरिया के साथ दो किग्रा ऊर्जा जैविक भी लेना जरूरी है। न लेने पर उर्वरक विक्रेता देने से इंकार कर देते हैं।