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पुरातात्विक महत्व से युक्त है रामजन्मभूमि की मिट्टी

आस्था के साथ अध्ययन की संभावना। रामसेवकपुरम एवं कुबेर टीला की तह में सहेजी जा रही नींव खनन में निकली मिट्टी।

By JagranEdited By: Published: Sun, 21 Feb 2021 11:32 PM (IST)Updated: Mon, 22 Feb 2021 08:28 AM (IST)
पुरातात्विक महत्व से युक्त है रामजन्मभूमि की मिट्टी

अयोध्या : मंदिर की नींव के लिए रामजन्मभूमि की जो मिट्टी खोदी जा रही है, वह आस्था से जुड़ी होने के साथ पुरातात्विक अध्ययन की संभावनाओं से युक्त है। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट नींव के खनन में निकलने वाली मिट्टी धरोहर की तरह रामजन्मभूमि परिसर में ही स्थित कुबेर टीला एवं परिसर से करीब दो किलोमीटर दूर स्थित रामसेवकपुरम में सहेज रहा है। रामजन्मभूमि की सतह से जुड़ी पुरातात्विक संभावनाएं गत वर्ष रामजन्मभूमि के इर्द-गिर्द चल रहे समतलीकरण के दौरान बड़ी मात्रा में मिली पुरासामग्रियों से होती है। प्राप्त पुरावशेष में कलश, एक दर्जन से अधिक मूर्ति युक्त पाषाण स्तंभ, देवी-देवताओं की खंडित मूर्तियां, नक्काशीदार शिवलिग, प्राचीन कुआं आदि शामिल थे। नौ नवंबर 2019 को रामलला के हक में सुप्रीम फैसला आने के साथ ही यह स्पष्ट हो गया था कि जिस गर्भगृह में रामलला विराजमान थे, वहां विक्रमादित्ययुगीन मंदिर था और यह समीकरण समतलीकरण के दौरान मिले अवशेष से और पुख्ता हुआ। रामजन्मभूमि परिसर में विक्रमादित्ययुगीन मंदिर के साथ कई अन्य मंदिरों के अवशेष दफन होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। रामजन्मभूमि परिसर में रामलला के मंदिर के अलावा कई अन्य देवी-देवताओं के प्राचीन-पौराणिक मंदिर सहित उन आधा दर्जन मंदिरों के अवशेष भी समाहित हैं, जिन्हें 28 वर्ष पूर्व सही-सलामत अधिग्रहीत कर 67.77 एकड़ के परिसर में शामिल किया गया था। हालांकि समतलीकरण में मिले सात ब्लैक टच स्टोन का समीकरण कसौटी के स्तंभ से जोड़ कर देखा जा रहा है। मान्यता है कि विक्रमादित्य ने दो हजार वर्ष पूर्व जिस मंदिर का निर्माण कराया था, वह कसौटी के ऐसे ही स्तंभों पर टिका था। साकेत महाविद्यालय में प्राचीन इतिहास विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. कविता सिंह कहती हैं, यह पहले से ही तय है कि रामजन्मभूमि परिसर में स्वर्णिम अतीत की भरी-पूरी पटकथा समाहित है और राम मंदिर निर्माण के साथ वह उसे पूरी समग्रता से सामने लाने की जरूरत है और ऐसे किसी प्रयास में रामजन्मभूमि की सतह से प्राप्त मिट्टी का पुरातात्विक अध्ययन सहायक सिद्ध होगा। उनका सुझाव है कि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को निर्माण के दौरान पुरातात्विक धरोहरों को संरक्षित करने के साथ अतीत के संकेतों को ध्यान में भी रखकर निर्माण की दिशा तय करनी होगी। राम मंदिर के साथ त्रेतायुगीन धरोहर की पूरी पांत

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- रामनगरी के पारंपरिक अतीत और पुराणों के शोधार्थी आचार्य रामदेवदास शास्त्री कहते हैं कि मंदिर के पक्ष में अदालती फैसला आने के बाद भव्य मंदिर निर्माण के साथ इस परिक्षेत्र का समुचित पुरातात्विक और पौराणिक सर्वेक्षण होना चाहिए। शास्त्री के अनुसार राम मंदिर के अलावा इस परिक्षेत्र में त्रेतायुगीन धरोहरों की पूरी पांत दफन है और कला, संस्कृति एवं परंपरा के अनुरागी के तौर पर इसे जीवंत होते देखना अत्यंत गौरवमय होगा। चार सौ गुणे ढाई सौ वर्ग फीट में हो रहा खनन

राममंदिर निर्माण के लिए रामजन्मभूमि सहित उसके इर्द-गिर्द की चार सौ फीट लंबी और ढाई सौ फीट चौड़ी भूमि पर खनन इसी वर्ष 15 जनवरी से चल रहा है। नींव की कार्ययोजना के अनुसार खनन 12 फीट गहराई तक होना है और गत सवा माह के दौरान खनन का आधा से अधिक काम हो भी चुका है। इस दौरान सैकड़ों ट्रक मिट्टी निकाली जा चुकी है, जिसे रामसेवकपुरम एवं कुबेर टीला पहुंचाए जाने का सिलसिला जारी है। तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य डॉ. अनिल मिश्र के अनुसार यह मिट्टी हमारे लिए महत्वपूर्ण है और इसे सामान्य मिट्टी की तरह अपने हाल पर नहीं छोड़ा जा सकता।


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