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रामानंदाचार्य की परंपरा आराध्य की भूमि पर खूब फली फूली

रामानंदाचार्य ने इस्लाम ग्रहण करने को विवश हुए अयोध्या के तत्कालीन शासक को उसके परिवारजनों सहित वापस हिदू धर्म में दीक्षित किया।

By JagranEdited By: Published: Sun, 23 Jan 2022 11:48 PM (IST)Updated: Sun, 23 Jan 2022 11:48 PM (IST)
रामानंदाचार्य की परंपरा आराध्य की भूमि पर खूब फली फूली

अयोध्या (रघुवरशरण): 722 वर्ष पूर्व रामानंदाचार्य का जन्म प्रयाग में हुआ और उनकी साधना स्थली काशी, पर उनकी साध्य रामनगरी रही है। वह श्रीराम के प्रबल अनुरागी थे। इतने कि उनके बारे में यहां तक कहा गया, रामानंद स्वयं राम: प्रादुर्भूतो महीतले। उन्होंने जिस दर्शन और उपासना परंपरा को प्रवर्तित किया, वह उनके आराध्य श्रीराम की भी भूमि अयोध्या में सदियों बाद भी खूब फल-फूल रही है। रामनगरी के 10 हजार से अधिक मंदिरों में से 90 फीसदी से अधिक रामानंदीय परंपरा के पोषक हैं। दार्शनिक तल पर तो यह परंपरा रामानुजीय परंपरा की तरह परमात्मा के साथ जीव और जगत को भी सत्य मानती है, लेकिन आराध्य के रूप में रामानंदीय परंपरा के आचार्य भगवान नारायण एवं लक्ष्मी की बजाय राम एवं सीता को सर्वोपरि मानते हैं। वैष्णवों की जिस परंपरा में भगवान राम एवं सीता आराध्य बने, उनकी नगरी अयोध्या में यह परंपरा सहज प्रवाह के साथ रामनगरी में स्वाभाविक तौर पर प्रतिष्ठापित हुई। काशी में साधना-सिद्धि का डंका बजाने के बाद रामानंदाचार्य आराध्य की भूमि शिरोधार्य करने अयोध्या आए भी। उनकी यात्राओं का विवरण प्रस्तुत करते ग्रंथ के अनुसार अपने अयोध्या प्रवास के दौरान रामानंदाचार्य ने इस्लाम ग्रहण करने को विवश हुए अयोध्या के तत्कालीन शासक को उसके परिवारजनों सहित वापस हिदू धर्म में दीक्षित किया। मान्यता है कि रामानंदाचार्य रामनगरी के जिस स्थल पर ठहरे थे, वह जानकीघाट स्थित दर्शनभवन मंदिर है। इसे आज भी रामानंद मंदिर के भी रूप में जाना जाता है और यहां संप्रदायाचार्य की चरण पादुका स्थापित है। ----------इनसेट------- प्रतिनिधि आचार्यों से परिलक्षित है अनुराग

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-स्थानीय संतों में अपने आद्याचार्य के प्रति असीम अनुराग परिलक्षित है। उनके अध्यात्म-दर्शन को आत्मस्थ करने की प्रतिबद्धता के बीच करीब सौ वर्ष पूर्व आद्याचार्य के प्रतिनिधि आचार्यों को पदासीन करने की परंपरा शुरू की। प्रथम रामानंदाचार्य के रूप में स्वामी भगवदाचार्य को प्रकांड आचार्य और आद्याचार्य की मर्यादा के संवाहक के रूप में याद किया जाता है। उनके बाद शिवरामाचार्य एवं स्वामी हर्याचार्य आद्याचार्य के प्रतिनिधि के रूप में पदासीन हुए। वर्तमान में जगद्गुरु रामदिनेशाचार्य सहित रामनगरी के बाहर के कई अन्य आचार्य आद्याचार्य के अनुगमन की मिसाल बने हुए हैं।


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