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Shri Ram Mandir Ayodhya: गहन शोध का विषय हैं कसौटी के स्तंभ, हनुमान जी लंका से लाये वापस

Shri Ram Mandir Ayodhya रामजन्मभूमि की प्रामाणिकता-प्राचीनता के परिचायक हैं यह स्तंभ। राम मंदिर के सुदीर्घ इतिहास के साथ कसौटी के स्तंभों का वजूद रहा है प्रवाहमान।

By Divyansh RastogiEdited By: Published: Tue, 11 Aug 2020 07:50 PM (IST)Updated: Tue, 11 Aug 2020 07:50 PM (IST)
Shri Ram Mandir Ayodhya: गहन शोध का विषय हैं कसौटी के स्तंभ, हनुमान जी लंका से लाये वापस
Shri Ram Mandir Ayodhya: गहन शोध का विषय हैं कसौटी के स्तंभ, हनुमान जी लंका से लाये वापस

अयोध्या [रघुवरशरण]। Shri Ram Mandir Ayodhya: श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट मंदिर निर्माण के साथ रामजन्मभूमि की सतह के उत्खनन में प्राप्त हुए जिन पुरावशेषों को संरक्षित-प्रदर्शित करने की तैयारी में है, उनमें कसौटी के स्तंभ अहम हैं। इन स्तंभों को रामजन्मभूमि का प्राचीनतम और प्रामाणिक साक्ष्य माना जाता है। इसी वर्ष 20 मई को रामजन्मभूमि के समतलीकरण के दौरान बड़ी मात्रा में पुरावशेष प्राप्त हुए थे। इनमें देवी- देवताओं की खंडित मूर्तियां, कलश, मेहराब के पत्थर सहित सात ब्लैक टच स्टोन के स्तंभ शामिल हैं। ब्लैक टच स्टोन स्तंभ का समीकरण कसौटी के उन स्तंभों से स्थापित किया जाता है, जिन पर दो हजार वर्ष पूर्व महाराज विक्रमादित्य ने अत्यंत भव्य मंदिर का ढांचा खड़ा किया था। 

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1528 में बाबर के सेनापति मीर बाकी ने तोप से राम मंदिर को ध्वस्त तो कराया, पर उसके अनेक अवशेष रह गए और इन्हीं अवशेषों में कसौटी के वे स्तंभ भी थे, जिन पर विक्रमादित्य युगीन मंदिर स्थापित था। हालांकि विक्रमादित्य के समय का मंदिर कसौटी के 84 स्तंभों पर स्थापित था, पर मीर बाकी ने मंदिर की जगह मस्जिद का जो ढांचा निर्मित कराया, उसमें कसौटी के प्राचीन 84 स्तंभों में से 12 का प्रयोग किया गया। मस्जिद के ढांचे में प्रयुक्त यह स्तंभ छह दिसंबर 1992 को ढांचा ध्वंस से पूर्व तक मस्जिद के ढांचे में जहां के तहां स्थापित थे। ढांचा ध्वंस के दौरान इक्का-दुक्का स्तंभों को छोड़कर बाकी स्तंभ ढांचा के मलबे में दब गए।

 

हनुमान जी सभी 84 स्तंभों को लंका से वापस लाये

कसौटी के स्तंभों को भगवान राम के भी पूर्व का माना जाता है। रामगोपाल पांडेय शारद अपनी कृति 'रामजन्मभूमि का इतिहास' में लिखते हैं, भगवान राम के पूर्वज अनरण्य के समय रावण ने अयोध्या पर हमला किया था और हमले में अपने साथ रघुवंशियों के मुख्य आगार में लगे सभी 84 स्तंभों को लंका उठा ले गया था। भगवान राम जब लंका से मां सीता को लेकर आने लगे, तो हनुमान जी इन स्तंभों को अपने साथ वापस अयोध्या लेकर आये। भगवान राम के ही समय इन स्तंभों पर भव्य प्रासाद का निर्माण कराया गया। भगवान राम के स्वधाम गमन के बाद भीषण बाढ़ आयी और इससे अयोध्या को काफी क्षति उठानी पड़ी। भगवान राम के पुत्र कुश ने अयोध्या का पुनर्निर्माण कराने के साथ इन्हीं स्तंभों का प्रयोग कर रामजन्मभूमि पर भव्य-दिव्य मंदिर का निर्माण कराया। 

18वीं सदी के विवरण में भी है जिक्र

समकालीन इतिहासकार के तौर पर रामजन्मभूमि का इतिहास मथने वाली कृतियों 'अयोध्या रिविजिटेड' एवं 'अयोध्या : बियांड एड्यूस एविडेंस' के लेखक एवं सुप्रीमकोर्ट में राम मंदिर के पक्षकार रहे पूर्व आइपीएस अधिकारी किशोर कुणाल के अनुसार कसौटी के स्तंभों की प्रामाणिकता के बारे में 18वीं सदी के आस्ट्रियाई यात्री, पादरी एवं इतिहासकार टिफन टेलर के विवरण से भी जानकारी मिलती है। टेलर कुल 35 वर्ष तक भारत में रहा। 1767 से 72 के बीच वह अयोध्या भी आया। टेलर अपने विवरण में रामजन्मभूमि पर बने ढांचे में लगे कसौटी के 12 स्तंभों के बारे में उस समय की आम राय के हवाले से लिखता है कि यह स्तंभ हनुमान जी लंका से लाये थे। 

पुरातात्विक अध्ययन का उदाहरण बने

साकेत महाविद्यालय में प्राचीन इतिहास की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. कविता ङ्क्षसह के अनुसार कसौटी के इन स्तंभों में पुरातात्विक अध्ययन का उदाहरण बनने की क्षमता है। कार्बन डेंङ्क्षटग और अन्य विधियों का उपयोग कर पुरातत्वविदों को इनका काल निर्धारित करने का मौका दिया जाना चाहिए। रामनगरी के एक अन्य प्रतिनिधि इतिहासकार डॉ. हरिप्रसाद दुबे का मानना है कि इनके अध्ययन से राममंदिर के युगों पुराने इतिहास को पूरी वैज्ञानिकता से समीकृत करने में सहायता मिल सकती है। 


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