राजनीति में 'संतों' जैसा जिया संत ने जीवन
द्विवेदी को बेहद सादगी भरा जीवन जीने वाला नेता माना जाता है। वे रिक्शे बाइक या फिर किराए की जीप से प्रचार करते थे।
अयोध्या: संत श्रीराम द्विवेदी., वह शख्स जो तीन बार विधायक तो रहा, लेकिन राजनीति में संत जैसा जीवन जिया। राजनीतिक क्षेत्र में वे ईमानदार व जन सुलभ जनप्रतिनिधि रहे। दिवंगत श्रीराम द्विवेदी ने बीकापुर तहसील के तारुन ब्लाक के प्राइमरी स्कूल से शुरुआती पढ़ाई की। उच्च शिक्षा के लिए वे इलाहाबाद यूनिवर्सिटी गए, जहां से उन्होंने स्नातक व एलएलबी की पढ़ाई की। वहीं से उन्होंने छात्र राजनीति से अपना राजनीतिक सफर शुरू किया।
उन्होंने सात बार चुनाव लड़ा, लेकिन तीन बार ही विधायक चुने गए। वर्ष 1974 में वे बीकेडी से अयोध्या से उम्मीदवार बनाए गए थे, लेकिन जनसंघ के वेदप्रकाश अग्रवाल से चुनाव हार गए। इसके बाद उन्होंने छह बार बीकापुर से चुनाव लड़ा। संत सबसे पहले वर्ष 1977 में जनता पार्टी से बीकापुर से विधायक चुने गए थे। इसके बाद वे 1989 में स्वतंत्र उम्मीदवार और 1991 में भाजपा के टिकट पर विधानसभा पहुंचे। द्विवेदी को बेहद सादगी भरा जीवन जीने वाला नेता माना जाता है। वे रिक्शे, बाइक या फिर किराए की जीप से प्रचार करते थे। तीन बार एमएलए चुने गए पर उनके स्वभाव और सेवाभाव में कोई परिवर्तन नहीं आया। उनके पुत्र व पुत्रियों ने भी कभी नहीं समझा कि वे विधायक की संतान हैं। संपूर्ण क्रांति के प्रणेता जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में वे जेल भी गए थे। उनकी सादगी का आलम यह था कि एक-दो बार विधानसभा के गेट पर सुरक्षा कर्मियों ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया, जबकि उनके साथ वालों को जाने दिया। कई बार बस में सफर करने के दौरान कंडक्टर तक उनसे परिचय पत्र मांगते थे। खास बात यह है कि वे गीता का हमेशा अध्ययन करते रहते थे। उनके तीन पुत्र और दो पुत्रियां हैं। सात जून 2011 को उनका निधन हो गया। उनके बड़े पुत्र आनंद द्विवेदी कहते हैं कि हम भाई-बहनों को कभी यह एहसास ही नहीं हुआ कि हम विधायक के पुत्र हैं। वे कहते हैं कि पिता जी ने हमेशा सादगी भरा जीवन जीने की शिक्षा दी।