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रामनगरी में रघुवंशियों के साथ प्रतिष्ठित हैं मां जानकी की कुलदेवी

अयोध्या वासंतिक नवरात्र यूं तो भगवान राम के जन्मोत्सव के नाते रामनगरी में बेहद खास होता है लेकिन इस दौरान देवी की साधना के स्वर भी घनीभूत होते हैं। रामनगरी में शक्ति उपासना की गहरी जड़ें हैं। यहां भगवान राम की कुलदेवी बड़ी देवकाली के रूप में तो महारानी जानकी की कुलदेवी छोटी देवकाली के रूप में प्रतिष्ठित हैं। वासंतिक व शारदीय नवरात्र में दोनों ही मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था के केंद्र में होते हैं।

By JagranEdited By: Published: Fri, 05 Apr 2019 11:57 PM (IST)Updated: Sat, 06 Apr 2019 06:26 AM (IST)
रामनगरी में रघुवंशियों के साथ प्रतिष्ठित हैं मां जानकी की कुलदेवी
रामनगरी में रघुवंशियों के साथ प्रतिष्ठित हैं मां जानकी की कुलदेवी

अयोध्या : वासंतिक नवरात्र यूं तो भगवान राम के जन्मोत्सव के नाते रामनगरी में बेहद खास होता है, लेकिन इस दौरान देवी की साधना के स्वर भी घनीभूत होते हैं। रामनगरी में शक्ति उपासना की गहरी जड़ें हैं। यहां भगवान राम की कुलदेवी बड़ी देवकाली के रूप में तो महारानी जानकी की कुलदेवी छोटी देवकाली के रूप में प्रतिष्ठित हैं। वासंतिक व शारदीय नवरात्र में दोनों ही मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था के केंद्र में होते हैं।

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सबसे पहले आपको मां बड़ी देवकाली की मान्यता के बारे में बताते हैं। माना जाता है कि मां बड़ी देवकाली रघुवंशियों की कुलदेवी हैं। मान्यता है कि भगवान राम के प्राकट्य के बाद माता कौशल्या उन्हें देवकाली मां का दर्शन कराने के लिए लाईं थी। बड़ी देवकाली में भगवान राम पालने में विराजमान हैं। छोटी देवकाली को मिथिला की कुल देवी मां महागौरी माना जाता हैं। मान्यता है कि भगवान राम से विवाह के बाद माता जानकी महागौरी को अपने साथ लेकर आईं और उन्हें अयोध्या के तत्कालीन राजप्रासाद के ईशानकोण पर पूरे वैभव के साथ प्रतिष्ठित किया। युगों बाद छोटी देवकाली के रूप में माता महागौरी की प्रतिष्ठा प्रवाहमान है। नवरात्र के दिनों में माता की आराधना करने को स्थानीय के साथ ही आसपास के जिलों से भी श्रद्धालुओं का जमावड़ा होता है। ----------------- देवी पीठ भी होते हैं आस्था का केंद्र अयोध्या : माता बड़ी देवकाली और छोटी देवकाली के साथ शहर में कई ऐसे देवीमंदिर हैं, जहां नवरात्र के दिनों में श्रद्धालु अपनी आस्था जताने को बड़ी संख्या में एकत्र होते हैं। इन्हीं में कैंट स्थित पाटेश्वरीदेवी की गणना पौराणिक पीठ के रूप में होती है। माना जाता है कि यहां सती माता का पट गिरा था। इसी विरासत से समीकृत हो यह मंदिर पाटेश्वरीदेवी के मंदिर के तौर पर विकसित हुआ। अयोध्या-फैजाबाद नगर के बीच मां जालपादेवी की विरासत भी पौराणिक है। पौराणिक आख्यान के अनुसार भोले बाबा से परित्यक्त हो सती माता भगवान राम के प्रति आस्था पुख्ता करने अयोध्या आईं और यहां उचित स्थान देखकर उन्होंने भगवान राम की घोर तपस्या की। चुटकी माता मंदिर और लोटनी भवानी को अनादि माना जाता है। मान्यता है कि भगवान राम के बाल्यावस्था में चुटकी माता भगवान को चुटकी बजाकर सुलाती थीं और लोटनी भवानी भगवान की प्रसन्नता सुनिश्चित करने के लिए लोट-पोट हो जाती थीं। कैंट स्थित मरी माता मंदिर भी अपने श्रद्धालुओं की आस्था के केंद्र में होता है। शारदीय नवरात्र में मरी माता मंदिर में भव्य आयोजन होते हैं तो वासंतिक नवरात्र में भी अनुष्ठान और पूजन का सिलसिला पूरी भव्यता से चलता है।


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