रामनगरी में स्थापित होगा रामलीला का गुरुकुल
अयोध्या रामनगरी में रामलीला युगों से प्रवाहमान है। स्वयं श्रीराम के बारे में मान्यता है कि उ
अयोध्या : रामनगरी में रामलीला युगों से प्रवाहमान है। स्वयं श्रीराम के बारे में मान्यता है कि उनके रूप में परात्पर ब्रह्म इस धरा पर मानवीय लीला करने आये। उनके समय ही आदि कवि वाल्मीकि ने मां सीता के साथ उनकी लीला का वर्णन रामायण में किया। 15वीं शताब्दी ईस्वी के उत्तरार्द्ध में गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस के रूप में श्रीराम पर केंद्रित कालजयी ग्रंथ की रचना करने के साथ रामलीला मंचन की परंपरा को भी नया आयाम प्रदान किया। तब से यह परंपरा सतत प्रवाहमान है। यद्यपि गोस्वामी तुलसीदास ने रामलीला की प्रस्तुति का प्रयोग भोले की नगरी काशी में किया, पर जल्दी ही यह प्रयोग रामनगरी पहुंचा। रामनगरी के संतों ने श्रीराम के साथ रामलीला को भी शिद्दत से शिरोधार्य किया। बदलते दौर के साथ यदि रामलीला जैसी धुर पारंपरिक विधा हाशिये पर सरकती प्रतीत हुई, तो सरकार ने इस विधा को संरक्षित-संवर्धित करने का बीड़ा उठाया। इसी क्रम में अयोध्या शोध संस्थान में नित्य रामलीला की प्रस्तुति शुरू हुई। नवंबर 2016 में शोध संस्थान के तत्कालीन व्यवस्थापक के आकस्मिक निधन के चलते सवा दशक तक प्रवाहमान रामलीला की नित्य प्रस्तुति का क्रम कुछ माह के लिए जरूर बाधित हुआ, पर 2017 से यह क्रम नये सिरे से आगे बढ़ा। कोरोना संकट के चलते 21 मार्च, 2020 से नित्य रामलीला का क्रम पुन: बाधित तो हुआ, पर रामलीला सरकार की प्राथमिकताओं से विलग नहीं हुई। इसी क्रम में सरकार की योजना रामनगरी में रामलीला का गुरुकुल स्थापित करने की है। यह ऐसा गुरुकुल होगा, जहां रामलीला की निरंतर अनुगूंज के साथ प्रस्तुति में शामिल होने वाले कलाकारों की प्रतिभा को तराशने में कोई कसर नहीं छोड़ी जायेगी। संस्कृति विभाग ने ताल-वाद्य कचहरी के रूप में प्रदेश की जिन 30 लोक संगीत और नाट्य की शैली को संयोजित करने की योजना बनायी है, उनमें से एक रामनगरी की रामलीला है। प्रशिक्षण, प्रस्तुति और परीक्षण से होती हुई प्रदेश के प्रतिनिधि सांस्कृतिक बैंड के रूप में लोक संगीत एवं नाट्य को एकसूत्र में पिरोने की मुहिम मार्च माह तक पूर्ण होने को है, पर रामलीला को प्रोत्साहित करने की मुहिम इसके बाद फलक पर उभरेगी। जैसी कि संभावना है कि यदि रामलीला की प्रस्तुति छाप छोड़ने में कामयाब हुई, तो इसे प्रोत्साहित करने के लिए गुरुकुल स्थापित करने की योजना पर अमल होगा और इसके लिए केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय की ओर से सेलरी ग्रांट के रूप में करोड़ों की राशि अवमुक्त की जा सकती है। गुरुकुल के लिए चिह्नित किये जा रहे आचार्य
- संस्कृति विभाग के आंचलिक केंद्र अयोध्या शोध संस्थान की ओर से गुरुकुल की स्थापना के लिए रामलीला के आचार्यों को चिह्नित किये जाने की प्रक्रिया भी शुरू हो गयी है। शोध संस्थान के प्रशासनिक अधिकारी रामतीरथ बताते हैं कि रामलीला का गुरुकुल संचालित करने के लिए पत्थर मंदिर के महंत मनीषदास एवं महावीरदास से संपर्क किया जा रहा है। गत दो शताब्दी की अवधि में दौर चाहे जैसा रहा हो पत्थर मंदिर से रामलीला को पुष्पित-पल्लवित करने की मुहिम कभी ठंडी नहीं पड़ी। तीन वर्ष पूर्व चिरनिद्रा में लीन हुए पत्थर मंदिर के महंत जयरामदास को रामलीला की प्रस्तुति से जुड़े अनेक आयामों- उप आयामों का प्रकांड आचार्य माना जाता है। जयरामदास के शिष्य एवं पत्थर मंदिर के वर्तमान महंत मनीषदास भी नाट्य परंपरा के निष्णात आचार्य हैं। गत दशक से रामलीला को पूरे यत्न से सहेजने के लिए जानकीघाट निवासी महावीरदास का नाम भी पूरे सृजनधर्मी आचार्य के रूप में लिया जाता है।