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साधना-सिद्धि की ²ष्टि से बेजोड़ थे संप्रदायाचार्य : बिदुगाद्याचार्य

722वीं जयंती पर महान संत एवं दार्शनिक रामनंदाचार्य को रामनगरी ने किया नमन

By JagranEdited By: Published: Tue, 25 Jan 2022 12:35 AM (IST)Updated: Tue, 25 Jan 2022 12:35 AM (IST)
साधना-सिद्धि की ²ष्टि से बेजोड़ थे संप्रदायाचार्य : बिदुगाद्याचार्य
साधना-सिद्धि की ²ष्टि से बेजोड़ थे संप्रदायाचार्य : बिदुगाद्याचार्य

अयोध्या : महान संत, दार्शनिक एवं रामानुराग की प्रतिनिधि धारा रामानंद संप्रदाय के प्रवर्तक स्वामी रामानंदाचार्य को 722वीं जयंती पर पूरी निष्ठा से नमन किया गया। भगवदाचार्य स्मारक सदन में प्रात: से ही स्वामी रामानंदाचार्य का विधि-विधान से पूजन शुरू किया गया। तदुपरांत स्वामीजी के व्यक्तित्व-कृतित्व पर केंद्रित गोष्ठी आयोजित की गई। गोष्ठी में दशरथगद्दी बड़ास्थान के महंत बिदुगाद्याचार्य देवेंद्रप्रसादाचार्य ने कहा, संप्रदायाचार्य न केवल साधना-सिद्धि की ²ष्टि से बेजोड़ थे, बल्कि सामाजिक एकता का उनका प्रयास अनुपम है और सामाजिक एकता का संवाहक है। समारोह का संयोजन हनुमानगढ़ी से जुड़े महंत ज्ञानदास के शिष्य अजितदास ने किया। उन्होंने कहा, स्वामीजी ने सभी को भगवान की शरणागति का सूत्र प्रदान किया और उनका यह सूत्र रामभक्ति के क्षितिज को कहीं अधिक व्यापक और करुणायुक्त बनाने वाला रहा है। संचालन महंत तुलसीदास ने किया। इस मौके पर जानकीघाट बड़ास्थान के महंत जन्मेजयशरण, रामायणी राममंगलदास, महंत पवनकुमारदास शास्त्री, स्मृतिशरण, सरोजदास, कविराजदास, राजीवरंजन पांडेय, भगवानशरण आदि ने संप्रदायाचार्य को भावांजलि दी। इस दौरान गीत-संगीत की भी छटा बिखरी। बरसात के बावजूद सायं स्वामी रामानंदाचार्य की स्मृति में मणिरामदासजी की छावनी से शोभायात्रा निकाली गई। छावनी के उत्तराधिकारी महंत कमलनयनदास के संयोजन में निकली शोभायात्रा में बड़ी संख्या में संत एवं श्रद्धालु शामिल हुए। शोभायात्रा का जगह-जगह स्वागत किया गया।

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संस्कृति संरक्षित करने वाले कालजयी नायक

- जिस स्थल पर सात शताब्दी पूर्व रामनगरी पहुंच कर डेरा डाला था, उस स्थल पर निर्मित दर्शनभवन में स्थापित आचार्य विग्रह एवं चरण पादुका का पूजन किया गया। 11 वैदिक ब्राह्मणों ने श्रीसूक्त-पुरुषसूक्त के साथ रामानंद स्तुति का गायन किया। दर्शनभवन की महंत डा. ममता शास्त्री ने कहा, स्वामी रामानंदाचार्य सनातन संस्कृति संरक्षित करने वाले कालजयी नायक हैं और यदि वे न होते, तो सनातन धर्म और संस्कृति का अनंत प्रवाह बाधित हो जाता।


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