राम जन्मोत्सव के स्वागत में निहाल हो रही रामनगरी
अयोध्या : राम जन्मोत्सव के स्वागत में रामनगरी निहाल हो रही है। श्रद्धालुओं की आमद के बीच रामक
अयोध्या : राम जन्मोत्सव के स्वागत में रामनगरी निहाल हो रही है। श्रद्धालुओं की आमद के बीच रामकथा की रसधार प्रवाहित हो रही है। ¨हदूधाम में नौ दिवसीय रामकथा का क्रम आगे बढ़ाते हुए वशिष्ठ पीठाधीश्वर एवं रामजन्मभूमि न्यास के सदस्य डॉ. रामविलास दास वेदांती ने कहा, सुग्रीव जो कर रहे हैं, यह जीव का स्वभाव है। उसे लक्ष्मण जैसे विरागी से तराशे जाने की आवश्यकता होती है और तब वह प्रमाद से ऊपर उठ कर सत्य एवं शक्ति के संधान में समर्पित होता है। लक्ष्मण की चेतावनी पाकर सुग्रीव भगवान राम के पास पहुंचते हैं और मां सीता की खोज की तैयारियों की रूपरेखा बताते हैं। यद्यपि भगवती सीता की खोज के लिए चारो दिशाओं में वंदरों का प्रस्थान होता है पर नल, नील, अंगद, हनुमान, जामवान व अन्य बड़े वीर दक्षिण दिशा को ओर प्रस्थान करते हैं। संचालन वशिष्ठ पीठ के उत्तराधिकारी महंत डॉ. राघवेशदास ने किया। अशर्फीभवन मंदिर के माधवभवन सभागार में चल रही राम कथा के छठवें दिन जगदगुरु रामानुजाचार्य स्वामी श्रीधराचार्य ने बताया, भगवान राम के वन जाने के बाद अयोध्या वासियों की स्थिति दयनीय हो गई। जिस अयोध्या में प्रतिदिन उत्सव का आयोजन होता था, वहां रुदन चल रहा है। राम के वियोग में दशरथ ने तड़प-तड़प कर प्राणों की आहुति दे दी। अयोध्या पर आए इस असहनीय संकट को देख कर गुरु वशिष्ठ ने भरत को अयोध्या बुलाया। राम के वनगमन का कारण जान कर भरत अत्यंत क्षुब्ध हैं। गुरु वशिष्ठ भरत को समझाते हैं और अयोध्या के राज ¨सहासन पर बैठने की आज्ञा देते हैं पर भरत भाई राम को मनाने के लिए वन में जाते हैं। कोशलेशसदन के सभागार रामानुजीयम में जगदगुरु रामानुजाचार्य स्वामी वासुदेवाचार्य विद्याभास्कर ने राम-रावण के युद्ध की समाज शास्त्रीय एवं राजनीतिक व्याख्या की। उन्होंने कहा, एक ओर समाज को पदाक्रांत कर अपनी सनक आरोपित करने वाला रावण है, दूसरी ओर प्रभु राम हैं। जो अपनी अस्मिता से अधिक दूसरों की अस्मिता की ¨चता करते हैं। वर्तमान का भी यही द्वंद है। कुछ लोग रावण की तरह शक्ति और सत्ता हासिल कर समाज को अपने हिसाब से हांकने का दुष्चक्र रचते रहते हैं और कुछ लोग आत्महीनता के शिकार होकर उनके अनुवर्ती भी बन जा रहे हैं। जगदगुरु ने इससे पूर्व रामवनगमन का विवेचन किया और कहा, राम के रोकने के बावजूद जानकी जी ने उनका अनुसरण करते हुए सहधर्मिणी होने का आदर्श प्रस्तुत किया। सियारामकिला झुनकीघाट में स्वामी प्रभंजनानंदशरण ने रामकथा में अवगुंठित नैतिक मूल्यों का निर्वचन किया और कहा, रामकथा अंत:करण प्रशस्त करने के साथ जीवन की महान संभावनाएं जगाने का सूत्र प्रदान करती है। उन्होंने राम, भरत, लक्ष्मण, हनुमान आदि के मध्य संवाद का जिक्र करते हुए बताया कि ये सारे प्रसंग जीवन में समत्व के नियामक हैं और यदि हम इन सूत्रों को अंगीकार कर सकें, तो हमारा जीवन स्वत: उच्चतर आयाम का स्पर्श करने लगेगा।
---------------इनसेट---------------------------रामनगरी में कृष्णलीला की छटा- यूं तो रामनगरी रामनवमी के अवसर पर रामभक्ति में गोते लगा रही है पर रामघाट स्थित श्यामासदन में कृष्णलीला की छटा बिखर रही है। वृंदावन के राधावल्लभ रासलीला संस्थान के संयोजन में पांच दिवसीय रासलीला के दूसरे दिन कंस के अत्याचार, पृथ्वी पुकार एवं कारागृह में भगवान कृष्ण की लीला का जीवंत मंचन किया गया। कंस की भूमिका में पं. सुरेश एवं वासुदेव की भूमिका में कन्हैयालाल ने खूब वाह-वाही बटोरी व्यास से लेकर लीला के निर्देशक की भूमिका में राधावल्लभ दीक्षित ने भी छाप छोड़ी। लीला से पूर्व रास की प्रस्तुति से भी कलाकारों की प्रतिभा बयां हुई। राधा-कृष्ण की छवि साकार करने के साथ कलाकारों ने मयूर नृत्य, चक्र-सुदर्शन नृत्य के दौरान अपनके कौशल का परिचय दिया।
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पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने भी किया रामकथा का पान
- बड़ा भक्तमाल मंदिर में संचालित रामकथा के श्रोताओं में प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष डॉ. निर्मल खत्री भी शामिल रहे। उन्होंने घंटा भर से अधिक समय तक सहयोगियों क साथ पंडाल में मौजूद रह कर कथा श्रवण किया। इस दौरान मंदिर के महंत अवधेशदास एवं कथाव्यास जगद्गुरु डॉ. राघवाचार्य ने डॉ. खत्री को अंगवस्त्र भेंट कर आशीर्वाद भी दिया। इस दौरान उनके साथ नागा रामलखनदास सहित एआइसीसी सदस्य राजेंद्रप्रताप ¨सह एवं उग्रसेन मिश्र, जिला कांग्रेस अध्यक्ष रामदास वर्मा, धर्मवीर दुबे, श्रीनिवास पोद्दार, अनूप मिश्र आदि भी रहे।
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दो दिन मनेगा राम जन्मोत्सव
- राम जन्मोत्सव दो दिन मनाया जाएगा। मध्याह्न 12 बजे रामजन्म की बेला को ध्यान में रखकर एक वर्ग रविवार को रामनवमी मनाने की तैयारी में है। कनकभवन एवं रंगमहल जैसे मंदिरों में रविवार को ही राम जन्मोत्सव मनाए जाने की तैयारी है। जबकि उदया तिथि को वरीयता देने वाले सोमवार को राम जन्मोत्सव मनाएंगे। ऐसे मंदिरों में मणिरामदास जी की छावनी, रामवल्लभाकुंज आदि प्रमुख हैं। यद्यपि सोमवार को मध्याह्न जब राम जन्मोत्सव मनाया जाएगा, तब दशमी की तिथि रहेगी। इसी भेद के चलते अष्टमी को लेकर भी भ्रम व्याप्त हो गया है और शनिवार एवं रविवार को लोग अपने-अपने हिसाब से अष्टमी मनाने की तैयारी में हैं।