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अंगद ने चूर किया रावण का दंभ, मेघनाद ने लक्ष्मण को किया मूर्छित

सेतुबंध रावण-अंगद संवाद लक्ष्मण-मेघनाद युद्ध एवं मूर्छित लक्ष्मण के सामने श्रीराम के शोक का मार्मिक मंचन. सितारों से सज्जित अयोध्या की नौ दिवसीय रामलीला की सातवीं शाम.

By JagranEdited By: Published: Fri, 23 Oct 2020 10:54 PM (IST)Updated: Sat, 24 Oct 2020 05:03 AM (IST)
अंगद ने चूर किया रावण का दंभ, मेघनाद ने लक्ष्मण को किया मूर्छित
अंगद ने चूर किया रावण का दंभ, मेघनाद ने लक्ष्मण को किया मूर्छित

अयोध्या : पुण्य सलिला सरयू के तट पर स्थित शीर्ष पीठ लक्ष्मणकिला के परिसर में आयोजित नौ दिवसीय रामलीला परिणति की ओर बढ़ने के साथ रोमांच के चरम का एहसास करा रही है। शुक्रवार को गणेश वंदना की पारंपरिक प्रस्तुति के बाद अगला ²श्य सेतु बंध का होता है। मंच पर एनीमेशन के माध्यम से समुद्र की अपार जलराशि की अनुभूति अद्भुत थी, तो वानर सेना द्वारा समुद्र पर सेतु का निर्माण उद्यम का पर्याय परिभाषित कर रहा होता है। तकनीकी विशेषज्ञ नल-नील के संयोजन में बंदर-भालू पूरी तत्परता से समुद्र पर सेतु निर्माण के साथ असंभव को संभव बनाने की प्रेरणा दे रहे होते हैं। सेतु निर्माण के बाद अगला ²श्य रावण के दरबार का होता है। निरंतर मात खाने के बावजूद रावण की हेठी जीवंत करते हुए शाहबाज खान अपने अभिनय का लोहा मनवाते हैं, तो श्रीराम का संदेश लेकर रावण के दरबार में पहुंचे युवराज अंगद रावण के दंभ को तिल-तिल कर चूर करते हैं। जिन योद्धाओं के बूते रावण का दर्प आसमान छू रहा होता है, वे सब के सब विफल साबित होते हैं और पूरा जोर लगाने के बावजूद अंगद का पांव टस से मस नहीं कर पाते। क्रुद्ध, लज्जित, आशंकित और भयग्रस्त रावण स्वयं अंगद का पांव उठाने के लिए आगे बढ़ता है। एक साथ अनेक भाव को संयोजित कर इस ²श्य में रावण की भूमिका से न्याय बेहद दुष्कर था, पर शाहबाज खान ने अपनी पहचान के अनुरूप रावण को जीवंत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। ..तो अंगद की भूमिका में जाने-माने गायक, भोजपुरी फिल्मों के स्थापित अभिनेता तथा वर्तमान में भाजपा सांसद मनोज तिवारी भी खूब जमे। उनके सामने अंगद जैसी चपलता, बल-विक्रम, ओज और रामभक्ति से ओतप्रोत होने की चुनौती थी और इस चुनौती को उन्होंने बखूबी अंजाम दिया। रावण को श्रीराम की शरण में आने की सीख देते हुए वे रामभक्तों को पूरे प्रवाह से प्रेरित करते भी नजर आते हैं। रावण के दरबार से अंगद के लौटने के साथ ही युद्ध की दुंदुभि बज जाती है। अगले ²श्य में बला के युद्धकौशल का परिचय देते हुए साहस-शौर्य की प्रतिमूर्ति सुकुमार लक्ष्मण की भूमिका में लवकेश धालीवाल मेघनाद को खूब छकाते हैं, पर रावण का मायावी पुत्र दिव्यास्त्र की मदद से लक्ष्मण को मूर्छित कर देता है। प्रिय अनुज को मूर्छित देख धैर्य की प्रतिमूर्ति श्रीराम का धैर्य जवाब दे जाता है। श्रीराम की धीर-गंभीर और उदात्त छवि को जीवंत करने के बाद सोनू डागर ने लक्ष्मण के लिए विलाप के भी क्षणों को भी जीवंत किया। प्रसंग विस्तार के साथ विभीषण लक्ष्मण के इलाज के लिए सुषेण वैद्य को लाने का सुझाव देते हैं और कुछ ही क्षणों में सुषेण लक्ष्मण का परीक्षण करते नजर आते हैं। अगले ²श्य में संजीवनी बूटी लेने के लिए हनुमान जी हिमालय की ओर जा रहे होते हैं। हनुमान जी की भूमिका में बिदु दारा सिंह अपनी विरासत के अनुरूप हनुमान जी के बल-बुद्धि-विद्या से युक्त होने के साथ भक्ति के समर्पण को जीवंत कर रहे होते हैं। हिमालय की दहलीज पर कालनेमि से सामना होने पर उन्हें उसका छद्म समझने में देर नहीं लगती और घातक प्रहार से वे उसे पल भर में यमलोक भेज देते हैं। समय कम है और संजीवनी बूटी की पहचान मुश्किल है। ऐसे में हनुमान जी द्रोणागिरि नाम का पूरा पर्वत उखाड़ कर लंका के लिए रवाना होते हैं। जानो है बड़ी दूर बटेऊ कर ले रैन बसेरा रे

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- कालनेमि की भूमिका में परविदर सिंह ने खूब मनोरंजन कराया। इससे पूर्व शत्रुघ्न की भूमिका में तेजस्वी राजकुमार की छाप छोड़ने वाले परविदर ने कालनेमि के रूप में अभिनय का नया आयाम प्रस्तुत किया। हनुमान जी को भ्रमित करने के लिए कालनेमि की भूमिका में परविदर ने खूब ठुमके भी लगाये। ..तो पा‌र्श्व में लोक संगीत में पगा यह गीत बज रहा था, कितै को आवै कितै को जावै बाबा नै सब बैरा रे/ जानो है बड़ी दूर बटेऊ कर ले रैन बसेरा ले।


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