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After Ayodhya Verdict : जय-पराजय दरकिनार विवाद से मुक्ति स्वीकार

अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद इस छह दिसंबर को न तो शौर्य दिवस मनाया जाएगा और न काला दिवस।

By Divyansh RastogiEdited By: Published: Fri, 06 Dec 2019 11:36 AM (IST)Updated: Fri, 06 Dec 2019 11:36 AM (IST)
After Ayodhya Verdict : जय-पराजय दरकिनार विवाद से मुक्ति स्वीकार
After Ayodhya Verdict : जय-पराजय दरकिनार विवाद से मुक्ति स्वीकार

अयोध्या [रमाशरण अवस्थी]। सभ्य समाज बड़े से बड़े फैसले को किस तरह स्वीकार करता है, रामलला के हक में आया सुप्रीम फैसला इसका शानदार उदाहरण है। रामलला के पक्ष में आए फैसले का जश्न भी मना पर दूसरे पक्ष की भावनाएं आहत न होने पाएं, इस मर्यादा का भी पूरा पालन किया गया। दूसरे पक्ष ने भी फैसले को जय-पराजय के बोध से इतर विवाद से मुक्ति के रूप में स्वीकार किया। यह सच्चाई इस विवाद के पैरोकारों के रुख से भी बखूबी बयां हो रही है। फैसला आने के बाद इस छह दिसंबर को न तो शौर्य दिवस मनाया जाएगा और न काला दिवस।

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सबसे बड़ी मिसाल मो. इकबाल ही हैं। रामजन्मभूमि परिसर के सामने की सड़क पार करते ही उनका पीढ़ियों पुराना घर है, जहां से उनके पिता हाशिम अंसारी 1949 से रामजन्मभूमि को चुनौती देते रहे। विवादित स्थल को मस्जिद मानने और वहां से रामलला की मूर्ति हटाने की मांग को लेकर वर्षो अदालती लड़ाई लड़ने वाले हाशिम को 2016 में इंतकाल से पूर्व कुछ वर्षों के दौरान जैसे अंतिम सत्य का बोध हुआ और वह आपसी सहमति से मसले के हल का प्रयास करने लगे। इकबाल ने सहमति से समाधान की विरासत आगे बढ़ाने के साथ अदालत में पैरोकारी जारी रखी। वह चाहते हैं कि कोर्ट के आदेश के अनुरूप दी जाने वाली भूमि पर स्कूल और चिकित्सालय बने। इकबाल जहां विवाद को भुला देना चाहते हैं, वहीं खास दिन मनाए जाने के सवाल पर कहते हैं, अब लद गए खौफ के दिन।

गुजरात के एडीजी रहते स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने वाले पूर्व आइपीएस अधिकारी आचार्य किशोर कुणाल उन चुनिंदा किरदारों में शुमार रहे हैं, जिन्होंने अदालत में मंदिर की दावेदारी को पूरी प्रामाणिकता से प्रस्तुत किया। आचार्य कुणाल कहते हैं, अब तो सृजन की अमिट छाप छोड़ी जानी है।

शरद शर्मा उस विहिप के प्रवक्ता हैं, जिसके लोग जान देकर भी मंदिर की दावेदारी करते रहे और छह दिसंबर 1992 की घटना ऐसी ही प्रतिबद्धता की अभिव्यक्ति थी पर निर्णय के बाद उनका भी रुख बदल गया है। उन्हें अब छह दिसंबर का शौर्य दिवस छोड़कर उस दिन का इंतजार है, जब रामलला के मंदिर का शिलान्यास हो।


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