नवरात्र ऊर्जा संरक्षण का महापर्व : शास्त्री
नवरात्र ऊर्जा संरक्षण का महापर्व है। यूं तो ऊर्जा का स्वयं में कोई रूप नहीं होता पर तत्वज्ञ ऋषियों ने गहन आत्म विवेचन और साधना से उसका रूप निर्धारित किया। मां दुर्गा ऊर्जा की ही मूर्तिमंत स्वरूप हैं.
अयोध्या : नवरात्र ऊर्जा संरक्षण का महापर्व है। यूं तो ऊर्जा का स्वयं में कोई रूप नहीं होता पर तत्वज्ञ ऋषियों ने गहन आत्म विवेचन और साधना से उसका रूप निर्धारित किया। मां दुर्गा ऊर्जा की ही मूर्तिमंत स्वरूप हैं। नवरात्र के दिनों यानी बदलते मौसम की संधि बेला में ऊर्जा का स्फुरण कहीं अधिक सहज और प्रवाहमय होता है, इसलिए वासंतिक अथवा शारदीय नवरात्र के नौ दिन शक्ति उपासना के सर्वाधिक अनुकूल होते हैं। यह उद्गार हैं, प्रख्यात कथाव्यास आचार्य राधेश्याम के। वे प्रमोदवन स्थित अपने आश्रम भागवतभवन में नवरात्र के संदर्भ में श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने बताया कि शक्ति के अगणित स्वरूप हैं, पर मुख्य रूप से नौ स्वरूप हैं। पारंपरिक श्रद्धा के आधार पर शक्ति के नौ रूप सुनिश्चित ही हैं, वैज्ञानिक ²ष्टि से भी शक्ति के नौ रूप सुनिश्चित किए जा सकते हैं। हालांकि यह अलग विषय है। प्राथमिकता उस शक्ति को आत्मसात करने की है, जिससे हमारा जीवन कहीं अधिक परिष्कृत, उन्नत और मंगलकारी बन सके। हम देवी मां की उपासना पूरे प्राण से करें और यह महसूस करें कि अस्तित्व में जो भी शक्ति प्रवाहमान है, उससे हमारा तादात्म्य स्थापित हो सके। इस कोशिश में हम स्वयं को कहीं अधिक शक्ति संपन्न बना सकते हैं और ध्यान रहे कि शक्ति अहंकार के ठीक विपरीत ध्रुव की तरह है। श्रीराम जितने शक्तिशाली हैं, उतने ही विनम्र और रावण में अहंकार की वृद्धि के साथ शक्तिहीनता में उत्तरोत्तर वृद्धि होती है। शुरुआत ध्यान से करें और प्राण वायु रूपी ऊर्जा को महसूस करें, उसे स्वयं के साथ अविच्छिन्न करें। आत्मिक तल की यह कोशिश भौतिक ऊर्जा के भी संरक्षण के प्रयास में फलीभूत हो तो और भी बेहतर है।