श्रीराम के प्रति निष्ठा से प्रेरित था मंदिर आंदोलन : पवन
छह दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा ढहाये जाने के आरोप से बरी होने पर पूर्व विधायक पवन पांडेय ज्योतिर्मठ से जुड़े संत स्वामी ओंकारानंद एवं रामजी गुप्त का अभिनंदन किया गया.
अयोध्या : छह दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा ढहाये जाने के आरोप से बरी होने पर पूर्व विधायक पवन पांडेय, ज्योतिर्मठ से जुड़े संत स्वामी ओंकारानंद एवं रामजी गुप्त का अभिनंदन किया गया। इस मौके पर मित्रमंच के राष्ट्रीय प्रमुख शरद पाठक बाबा, प्रदेश अध्यक्ष बब्लू खान एवं प्रदेश महासचिव विजय पांडेय का भी अभिनंदन किया गया। इस दौरान पवन पांडेय ने बलिदानी कारसेवकों को याद किया। कहा, मंदिर आंदोलन को सांप्रदायिक उभार या किसी समुदाय विशेष से घृणा के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि यह आंदोलन सनातन संस्कृति की महान विरासत और इस विरासत के महान प्रतिनिधि भगवान श्रीराम के प्रति गहन निष्ठा से स्फुरित था। यह दौर बेहद खुशी का है कि रामजन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण का स्वप्न साकार होने जा रहा है, पर इसी के साथ हमें बलिदानी कारसेवकों की विरासत भी सहेज कर रखनी होगी और यह स्तंभों-स्मारकों के साथ उन भावनाओं और निष्ठा को जीवंत प्रवाह के रूप में होना चाहिए, जिस भाव और निष्ठा से कारसेवकों की पूरी पांत-पीढ़ी ने राम मंदिर के लिए बलिदान दिया था। बब्लू खान ने कहा, मंदिर आंदोलन वस्तुत: राष्ट्रीय आंदोलन था और यदि उस समय मोदी सरकार की तरह कोई राष्ट्रनिष्ठ सरकार होती, तो कारसेवकों को प्राण न गंवाने पड़ते। मित्र मंच के प्रमुख शरद पाठक ने कहा, मंदिर आंदोलन वस्तुत: सांस्कृतिक अस्मिता का आंदोलन था और आंदोलन तथा कारसेवकों की स्मृति सांस्कृतिक अस्मिता की भावधारा को सदैव रोशन करती रहेगी। स्वामी ओंकारानंद और रामजी गुप्त ने भी विचार रखे तथा तब की घटना के अनुभव साझा किये। कार्यक्रम में मित्र मंच के प्रदेश प्रभारी राजा पाठक, जिलाध्यक्ष अनुभव तिवारी, देशराज यादव, नीरज यादव, दिनेशकुमार, मानवेंद्र विक्रम, हरेंद्र कुमार, सचिन मौर्य, मयंक मिश्र, राज वर्मा, नितेश, सर्वेश, ज्योतिरादित्य शुक्ल, प्रशांत आदि प्रमुख रूप से मौजूद रहे।
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विश्वनाथ और कृष्ण जन्मभूमि की बारी
- मित्र मंच के प्रमुख शरद पाठक ने कहा, अब काशी विश्वनाथ और कृष्ण जन्मभूमि मुक्त कराने की बारी है और इस दिशा में मंच अपने स्तर से पूरा प्रयास करेगा। उन्होंने कहा, आस्था के इन केंद्रों से आक्रांताओं के चिह्न मिटने ही चाहिए।