रामनगरी में प्रतिपादित हो रही भोले से अभिन्नता
रामनगरी में भोले से अभिन्नता प्रतिपादित हो रही है। महाशिवरात्रि 11 मार्च को है पर इस पावन पर्व से जुड़ी आस्था फाल्गुन मास शुरू होते ही प्रवाहित होने लगी है। गुप्तारघाट स्थित पंचमुखी महादेव मंदिर में छह मार्च से पांच दिवसीय कथा की तैयारी मुखर होने लगी है।
अयोध्या : रामनगरी में भोले से अभिन्नता प्रतिपादित हो रही है। महाशिवरात्रि 11 मार्च को है, पर इस पावन पर्व से जुड़ी आस्था फाल्गुन मास शुरू होते ही प्रवाहित होने लगी है। गुप्तारघाट स्थित पंचमुखी महादेव मंदिर में छह मार्च से पांच दिवसीय कथा की तैयारी मुखर होने लगी है। पंचमुखी मंदिर के व्यवस्थापक आचार्य मिथिलेश नंदिनीशरण मर्मज्ञ कथा व्यास और श्रीराम तथा शिव के अनन्य उपासक हैं। पांच दिवसीय कथामाला में उनका ही प्रवचन प्रस्तावित है। कथामाला का शीर्षक है, 'को कृपाल संकर सरिस'। आचार्य मिथिलेश विषय का मर्म परिभाषित करते हुए बताते हैं, अन्यत्र शिव का रौद्र रूप प्रतिष्ठित है, पर श्रीराम के जीवन में शिव परम मंगलकारी रूप में हैं। इसके पीछे सूत्र है कि जीवन श्रीराम की तरह सरल-सहज, पावन-पवित्र हो तो शिव की रौद्र शक्ति मंगलकारी बन संभावनाओं का शिखर प्रशस्त कर सकती है। कथामाला को विराम 10 मार्च को प्रस्तावित है। इसी के साथ मंदिर में स्थापित पंचमुखी शिव के मंगलमयी विग्रह की झांकी सजाने की तैयारी आगे बढ़ चलेगी। शिवरात्रि के दिन यहां रामजन्मभूमि पर प्रस्तावित भव्य मंदिर की अनुकृति के रूप में शिव की झांकी सजाई जानी है। पंचमुखी महादेव मंदिर अपनी कलात्मक झांकी के लिए भी प्रसिद्ध है। प्रत्येक शिवरात्रि के अवसर पर यहां तय थीम के अनुरूप सुनियोजित झांकी सजाई जाती है।
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श्रीराम एवं शिव में परस्पर प्रीति का अवगाहन
- अशर्फीभवन चौराहा के करीब एक सभागार में प्रख्यात कथाव्यास पं. राधेश्याम शास्त्री ने श्रीराम एवं शिव में परस्पर प्रीति का अवगाहन करते हुए नौ दिवसीय कथा की शुरुआत की। प्रसंग था, रामकथा की उत्पत्ति का। शिव सती को रामकथा की मंदाकिनी में पुण्य स्नान कराना चाहते हैं, पर सती झूठ का आश्रय लेकर श्रीराम की असीम सत्ता पर संदेह करती हैं। सती का यह चरित्र शिव को असह्य लगता है और वे श्रीराम की महिमा के सामने पत्नी सती का परित्याग करने में एक पल की भी देरी नहीं करते। कथाव्यास ने गौर कराया कि सती की गल्ती श्रीराम पर संदेह करना नहीं है। संदेह का हक तो सबको है। संदेह बिना सत्य तक नहीं पहुंचा जा सकता, पर सत्य पर संदेह करने के लिए झूठ का आश्रय लिया जाना असह्य है। यही शिव का आचार्यत्व है।
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शिव से मिलती है अनंतानंत को जानने की ²ष्टि
- रामनगरी की शीर्ष पीठों में शुमार अशर्फीभवन भी मंगलवार से ही गुलजार हुआ। अशर्फीभवन पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी श्रीधराचार्य ने सात दिवसीय भागवतकथा का आरंभ किया। कथा में प्रवेश के साथ जगद्गुरु ने शिव तत्व पर भी प्रकाश डाला। कहा, शिव ही हमें अ²श्य-अवर्णनीय-अनंतानंत को देखने-जानने की ²ष्टि देते हैं। वह शिव से मिलने वाली आध्यात्मिक ऊर्जा है, जो सर्वाधिक दुरूह ब्रह्म तक पहुंचने की राह को सर्वाधिक सुगम बना देती है। इससे पूर्व कलशयात्रा निकाली गई। जगद्गुरु ने सरयू के रामकी पैड़ी तट पर पहुंची यात्रा के दौरान पुण्य सलिला का अभिषेक-पूजन किया। उन्होंने बताया कि सात दिवसीय कथा में श्रीकृष्ण के जीवन प्रसंगों के साथ भक्ति प्रतिपादित होगी और जब भक्ति की बात आएगी, तो शंकर को सबसे पहले रखना होगा।